
महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर (Breast Cancer) सबसे कॉमन कैंसर के रूप में तेजी से फैल रहा है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर चार मिनट में एक महिला ब्रेस्ट कैंसर की शिकार होती है। यह एक चिंताजनक आंकड़ा है जो महिलाओं को समय रहते जागरूक होने और नियमित स्वास्थ्य जांच कराने की आवश्यकता की ओर इशारा करता है। समय पर मैमोग्राफी (Mammography) जांच कराकर इस कैंसर की जल्दी पहचान और इलाज संभव है।
सर्वाइकल कैंसर: दूसरा सबसे घातक कैंसर
सर्वाइकल कैंसर (Cervical Cancer) महिलाओं में दूसरा सबसे घातक कैंसर माना जाता है। यह गर्भाशय के मुंह (सर्विक्स) का कैंसर होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट के अनुसार हर दो मिनट में एक महिला की मौत सर्वाइकल कैंसर से हो रही है। इसका मुख्य कारण ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (HPV) संक्रमण है, जो असुरक्षित यौन संबंधों और साफ-सफाई की कमी से फैलता है। इसका समय पर HPV वैक्सीनेशन और रेगुलर पैप स्मीयर टेस्ट से बचाव किया जा सकता है।
गर्भाशय का कैंसर: लक्षणों की अनदेखी ना करें
गर्भाशय का कैंसर (Uterine Cancer) एक और गंभीर बीमारी है जो महिलाओं को शारीरिक और मानसिक रूप से प्रभावित करती है। इसके लक्षणों में अनियमित मासिक धर्म, अत्यधिक ब्लीडिंग, पेशाब करते समय दर्द और सेक्स के दौरान असहनीय पीड़ा शामिल हैं। अगर इन लक्षणों को नजरअंदाज किया जाए, तो बीमारी गंभीर रूप ले सकती है। समय रहते जांच और इलाज जरूरी है।
पीसीओडी-पीसीओएस: हार्मोनल असंतुलन की गंभीर बीमारी
आजकल युवतियों में पीसीओडी (PCOD) और पीसीओएस (PCOS) की समस्या काफी आम हो गई है। यह एक हार्मोनल डिसऑर्डर है, जिसमें ओवरी में सिस्ट बन जाते हैं और पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं। इसका कारण जीवनशैली में बदलाव, स्ट्रेस, मोटापा और हार्मोनल इमबैलेंस है। यदि इसे समय पर नियंत्रित न किया जाए, तो यह इन्फर्टिलिटी (Infertility) जैसी समस्याओं का कारण बन सकता है।
एनीमिया: किशोरियों में सबसे आम समस्या
एनीमिया (Anemia) यानी शरीर में खून की कमी एक आम लेकिन गंभीर समस्या है, खासकर किशोरावस्था की लड़कियों में। यह आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन बी12 की कमी से होता है। इसके लक्षणों में थकान, चक्कर आना, त्वचा का पीला पड़ना और कमजोरी शामिल हैं। इसके लिए पौष्टिक आहार और आयरन सप्लीमेंट्स लेना जरूरी है।
मेनोपॉज: हार्मोनल बदलाव का संवेदनशील समय
मेनोपॉज (Menopause) महिलाओं की ज़िंदगी का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है, जो आमतौर पर 40 की उम्र के बाद आता है। इस दौरान शरीर में एस्ट्रोजन (Estrogen) नामक फीमेल हार्मोन की मात्रा कम हो जाती है, जिससे चिड़चिड़ापन, मूड स्विंग्स, अनिद्रा और हॉट फ्लैशेज जैसी समस्याएं पैदा होती हैं। इससे निपटने के लिए हार्मोन थेरेपी, योग और संतुलित आहार मददगार हो सकते हैं।
यह भी देखें: नाना की प्रॉपर्टी में कर सकते हैं दावा, ऐसे मांगें अपनी हिस्सेदारी जानें नियम-कानून
फर्टिलिटी और प्रजनन से जुड़ी अन्य समस्याएं
महिलाओं को अक्सर फर्टिलिटी (Fertility) यानी संतान उत्पत्ति से संबंधित समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। इसमें ओव्यूलेशन डिसऑर्डर, ट्यूबल ब्लॉकेज, एंडोमेट्रिओसिस और अन्य कई मेडिकल स्थितियां शामिल हो सकती हैं। इसके साथ ही निजी अंगों से जुड़ी कई और समस्याएं जैसे वैजाइनल इंफेक्शन, यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (UTI) भी महिलाओं में आम होती जा रही हैं। इनका समय पर इलाज बेहद जरूरी है।