
पूर्वी अफ्रीका (East Africa) में धरती के गर्भ में चल रहे भूवैज्ञानिक बदलाव एक नए महासागर के जन्म की ओर इशारा कर रहे हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह बदलाव पूर्वी अफ्रीकी रिफ्ट सिस्टम (East African Rift System – EARS) के चलते हो रहा है, जो न्युबियन और सोमालियाई टेक्टोनिक प्लेटों के अलग होने से बन रहा है। यह भूगर्भीय प्रक्रिया पृथ्वी की सबसे बड़ी और सक्रिय घटनाओं में से एक मानी जा रही है, जिसका असर आने वाले लाखों वर्षों में पूरे अफ्रीकी महाद्वीप की बनावट और भूगोल पर पड़ेगा।
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क्या है पूर्वी अफ्रीकी रिफ्ट सिस्टम (EARS)?
EARS एक विशाल दरार प्रणाली है जो इथियोपिया से शुरू होकर केन्या, तंजानिया और मोजाम्बिक तक लगभग 3,500 किलोमीटर तक फैली हुई है। यह दरारें टेक्टोनिक प्लेटों के खिंचाव और पृथ्वी की पपड़ी के पतले होने के कारण बन रही हैं। प्लेटें हर साल कुछ मिलीमीटर की गति से खिसक रही हैं, लेकिन लंबे समय में ये छोटी गतिविधियां बड़े बदलावों में तब्दील हो रही हैं।
कैसे बनता है नया महासागर?
जब दो टेक्टोनिक प्लेटें एक-दूसरे से दूर जाती हैं, तो उनके बीच की भूमि पतली और कमजोर होने लगती है। यही प्रक्रिया रिफ्टिंग (Rifting) कहलाती है। धीरे-धीरे इस क्षेत्र में दरारें गहरी होती जाती हैं और अंततः वहाँ समुद्र का पानी भर सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि लाल सागर (Red Sea) और अदन की खाड़ी (Gulf of Aden) का पानी इन दरारों में प्रवेश कर सकता है, जिससे भविष्य में एक नया महासागर (New Ocean) बन सकता है, जैसा कि अटलांटिक महासागर के निर्माण के दौरान हुआ था।
अफार क्षेत्र: परिवर्तन का केंद्र
2005 में इथियोपिया के अफार क्षेत्र (Afar Region) में एक बड़ी भूगर्भीय घटना घटी। 420 से अधिक भूकंपों की श्रृंखला ने इस क्षेत्र में 60 किलोमीटर लंबी और 10 मीटर गहरी दरार बना दी। यह घटना भूवैज्ञानिकों के लिए एक चेतावनी थी कि अफ्रीका का विभाजन अपेक्षा से कहीं अधिक तेजी से हो रहा है। यह दरार हर साल लगभग आधा इंच चौड़ी हो रही है।
किन देशों पर पड़ेगा सबसे अधिक असर?
इस भूगर्भीय गतिविधि से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले देश हैं:
- इथियोपिया
- केन्या
- तंजानिया
- सोमालिया
भविष्य में युगांडा, जाम्बिया और रवांडा जैसे लैंडलॉक्ड देशों को समुद्र से सीधा संपर्क मिलने की संभावना है, जिससे इन देशों को समुद्री व्यापार और अर्थव्यवस्था (Economy) में नए अवसर प्राप्त हो सकते हैं। वहीं, सोमालिया और इथियोपिया का कुछ हिस्सा अलग होकर एक नए महाद्वीप का रूप ले सकता है, जिसे वैज्ञानिक न्युबियन महाद्वीप (Nubian Continent) कह रहे हैं।
वैज्ञानिकों की नई चेतावनी
पहले यह माना जा रहा था कि यह प्रक्रिया करोड़ों साल लेगी, लेकिन हाल की स्टडीज और अफार क्षेत्र की घटनाएं दर्शाती हैं कि यह प्रक्रिया मात्र 5 से 10 लाख वर्षों में पूरी हो सकती है। टुलेन यूनिवर्सिटी की भूवैज्ञानिक सिंथिया एबिंगर (Cynthia Ebinger) के अनुसार, यदि इस क्षेत्र में बड़े भूकंप या ज्वालामुखी विस्फोट होते हैं, तो यह प्रक्रिया और भी तेज हो सकती है।
जलवायु और पारिस्थितिकी पर प्रभाव
नए महासागर के जन्म से अफ्रीका का पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) पूरी तरह बदल जाएगा। समुद्री जलवायु का प्रभाव मौसम, कृषि और जैव-विविधता (Biodiversity) पर पड़ेगा। नए समुद्री मार्ग और तटीय क्षेत्रों का निर्माण होगा, जिससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की दिशा भी बदल सकती है।
गोंडवाना सुपरकॉन्टिनेंट की याद
लगभग 18 करोड़ साल पहले गोंडवाना सुपरकॉन्टिनेंट (Gondwana Supercontinent) का टूटना इसी प्रकार की भूगर्भीय प्रक्रिया का परिणाम था। उसी समय अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका अलग हुए थे और अटलांटिक महासागर अस्तित्व में आया था। वैज्ञानिकों का मानना है कि पूर्वी अफ्रीका में जो कुछ हो रहा है, वह उसी प्रक्रिया का एक आधुनिक संस्करण है।
वैज्ञानिक निगरानी और अनुसंधान
भूवैज्ञानिक जीपीएस ट्रैकिंग (GPS Tracking), भूकंपीय डेटा (Seismic Data) और सैटेलाइट इमेजरी (Satellite Imagery) की मदद से इस रिफ्टिंग प्रक्रिया पर निरंतर नजर रखे हुए हैं। अफार क्षेत्र में मैग्मा की गतिविधियों और भ्रंश विस्तार का अध्ययन करके वे इस भूगर्भीय परिवर्तन की गहराई से समझ विकसित कर रहे हैं।