
Kedarnath Dham 2025 के संदर्भ में एक बार फिर भक्तों और शोधकर्ताओं के बीच यह सवाल चर्चा का विषय बन गया है कि आखिर केदारनाथ में विराजमान शिवलिंग का आकार त्रिभुजाकार क्यों है। यह न सिर्फ एक भौतिक संरचना है, बल्कि इसकी जड़ें महाभारत काल की उस कथा में जुड़ी हैं जहां पांडव अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की शरण में गए थे।
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भगवान शिव का रूपांतरण
महाभारत युद्ध के बाद जब पांडवों को यह एहसास हुआ कि उन्होंने युद्ध में अपने ही कुल के लोगों की हत्या की है, तब उन्होंने इस पाप से मुक्त होने के लिए भगवान शिव की खोज शुरू की। लेकिन भगवान शिव उनसे मिलने को इच्छुक नहीं थे। उन्होंने एक बैल यानी नंदी का रूप धारण किया और उत्तराखंड की ऊँची पहाड़ियों में छिप गए। पांडवों में सबसे बलशाली भीम ने उन्हें पहचान लिया और उन्हें पकड़ने के लिए बलपूर्वक प्रयास किया।
त्रिभुजाकार शिवलिंग की उत्पत्ति की कथा
भीम द्वारा जबरदस्ती पकड़ने के प्रयास में भगवान शिव बैल रूप में ही पृथ्वी में समाने लगे। लेकिन भीम ने उनकी पूंछ और पिछले अंगों को कसकर पकड़ लिया। संघर्ष के दौरान भगवान शिव का धड़ का हिस्सा बाहर रह गया और वहीं केदारनाथ में त्रिभुजाकार स्वरूप में प्रकट हो गया। यही त्रिभुजाकार आकृति आज केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह में पूजनीय शिवलिंग के रूप में विराजमान है, जो इस अद्वितीय लीला की अमर निशानी है।
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पंच केदार और शिव के विखंडित रूप
भगवान शिव के शरीर के अन्य भाग भी विभिन्न स्थलों पर प्रकट हुए जिन्हें अब पंच केदार कहा जाता है – तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मध्यमहेश्वर, कल्पेश्वर और केदारनाथ। ये सभी स्थल भगवान शिव की उस अद्भुत लीला को दर्शाते हैं जिसमें वे स्वयं को छिपाने का प्रयास करते हैं और अंततः भक्तों को दर्शन देते हैं। केदारनाथ में त्रिभुजाकार शिवलिंग उनका “कुबड़” है, जिसे सबसे पवित्र और प्राचीन माना जाता है।
भीम शिला: त्रासदी में सुरक्षा का प्रतीक
केदारनाथ मंदिर के पीछे स्थित एक विशाल शिला को भीम शिला कहा जाता है। 2013 की विनाशकारी बाढ़ के दौरान जब मंदिर क्षेत्र में भारी तबाही हुई थी, तब यह भीम शिला मंदिर के पीछे एक ढाल की तरह खड़ी हो गई थी और मंदिर को गंभीर नुकसान से बचा लिया। मान्यता है कि यह शिला भीम द्वारा स्थापित की गई थी और इसे देवत्व और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है।
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