Supreme Court: किराए पर संपत्ति देना और लेना कानूनी रूप से एक व्यवस्थित प्रक्रिया के तहत किया जाना चाहिए। अक्सर मकान मालिक और किराएदार के बीच विवाद होते हैं, जो अदालतों तक पहुंचते हैं। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही एक पुराने और पेचिदा विवाद का फैसला सुनाया, जो कि पिछले 48 सालों से लंबित था। आइए जानते हैं, इस मामले की खास बातें और कोर्ट के निर्णय के महत्वपूर्ण पहलू।
दिल्ली के कनॉट प्लेस में किराए पर दी गई दुकान
यह विवाद दिल्ली के प्रमुख व्यापारिक क्षेत्र कनॉट प्लेस में किराए पर दी गई एक दुकान से जुड़ा है। 1936 में एक केमिस्ट की दुकान चलाने के लिए एक कंपनी को यह दुकान किराए पर दी गई थी। लेकिन 1974 में मकान मालिक ने दुकान खाली कराने के लिए कानूनी कार्यवाही शुरू की, जिसका कारण किराएदार द्वारा दुकान को तीसरे पक्ष को किराए पर देना था।
अतिरिक्त किराया नियंत्रण से लेकर ट्रिब्यूनल तक
1974 में इस मामले में कानूनी लड़ाई शुरू हुई, लेकिन 1997 में अतिरिक्त किराया नियंत्रण ने मकान मालिक की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि दुकान मालिक सबलेटिंग का पर्याप्त सबूत नहीं दे पाए। मकान मालिक ने ट्रिब्यूनल में अपील की, जिसने उनके पक्ष में निर्णय दिया और किराएदार को बेदखल करने का आदेश दिया।
उच्च न्यायालय में किराएदार की याचिका और उसका निर्णय
ट्रिब्यूनल के आदेश के बाद किराएदार ने दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया। उच्च न्यायालय ने 2018 में ट्रिब्यूनल के आदेश को निरस्त कर दिया, यह कहते हुए कि किराएदार का दुकान पर पूरा नियंत्रण था और ट्रिब्यूनल का निर्णय गलत तथ्यों पर आधारित था।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां मकान मालिक के पक्ष में वरिष्ठ अधिवक्ता ध्रुव मेहता ने तर्क दिया कि सबलेटिंग का प्रमाण अंतिम स्तर पर साबित हो चुका था और उच्च न्यायालय को अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए था। किराएदार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राणा मुखर्जी ने कहा कि दुकान पर पूर्ण नियंत्रण किराएदार के पास ही था, पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति विनीत सरण और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस शामिल थे, ने उच्च न्यायालय के निर्णय को रद्द कर दिया और मकान मालिक के पक्ष में निर्णय दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि उच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 227 का अनुचित रूप से प्रयोग किया था और यह मामले के तथ्यों पर निर्णय के बजाय पर्यवेक्षी भूमिका में था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किराएदार ने अनुचित तरीके से दुकानों का सबलेट किया था और मकान मालिक का पक्ष सही ठहराया।