
ब्लैक होल बम (Black Hole Bomb) शब्द सुनते ही ज़हन में किसी ज़बरदस्त विस्फोट की कल्पना उभरती है। हालांकि, यह कोई पारंपरिक बम या हथियार नहीं है, बल्कि एक थ्योरी है जिसे दशकों पहले वैज्ञानिकों ने प्रस्तावित किया था। अब इस थ्योरी को पहली बार प्रयोगशाला में सफलतापूर्वक सिद्ध किया गया है। यह खोज न सिर्फ विज्ञान की दुनिया में मील का पत्थर है, बल्कि यह ब्लैक होल (Black Hole) को समझने के लिए एक बड़ा कदम भी माना जा रहा है।
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Black Hole Bomb की थ्योरी को व्यवहारिक तौर पर सिद्ध करना वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। यह प्रयोग भविष्य में उन संभावनाओं की ओर इशारा करता है जहां ब्रह्मांडीय ताकतों का इस्तेमाल कर नई टेक्नोलॉजी और ऊर्जा स्रोत विकसित किए जा सकते हैं। ऐसे प्रयोग अंतरिक्ष भौतिकी की सीमाओं को लगातार आगे बढ़ा रहे हैं और आने वाले समय में हम शायद ब्लैक होल की ताकत को नियंत्रित करने की दिशा में भी सोच सकें।
क्या है ब्लैक होल बम की थ्योरी?
ब्लैक होल बम की अवधारणा सबसे पहले 1970 के दशक में सामने आई थी। इस थ्योरी को रूसी वैज्ञानिक याकोव जेल्दोविच (Yakov Zel’dovich) और प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी रोजर पेनरोज (Roger Penrose) ने प्रस्तुत किया था। इनका मानना था कि ब्लैक होल केवल आसपास की चीजों को निगलता नहीं है, बल्कि उसकी स्पिन यानी घूर्णन गति से ऊर्जा उत्पन्न भी की जा सकती है। यदि इस ऊर्जा को सही तरीके से पकड़ा जाए, तो इससे इतनी शक्ति निकल सकती है कि यह खुद बम की तरह विस्फोटक रूप ले सकती है। इसी वजह से इसे “ब्लैक होल बम” कहा गया।
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थ्योरी से प्रयोगशाला तक का सफर
अब तक यह विचार केवल कागज़ों और गणनाओं तक सीमित था। लेकिन हाल ही में मैरियन क्रॉम्ब (Marion Cromb) के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने इसे प्रयोगशाला में सिद्ध कर दिखाया है। प्रयोग के लिए उन्होंने एक घूमने वाला एल्युमीनियम सिलेंडर लिया, जिसे चुंबकीय क्षेत्रों (Magnetic Fields) में रखा गया। यह चुंबकीय क्षेत्र चारों ओर फैल रहा था और सिलेंडर की गति के अनुसार ऊर्जा में परिवर्तन देखा गया।
कैसे किया गया प्रयोग?
वैज्ञानिकों ने सिलेंडर को तेज और धीमी गति से घुमाया। जब सिलेंडर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा में उससे तेज गति से घूमा, तो ऊर्जा की तीव्रता बढ़ने लगी। वहीं, जब सिलेंडर की गति धीमी की गई, तो ऊर्जा घटने लगी। यह ऊर्जा व्यवहार उसी थ्योरी के अनुसार था, जो ब्लैक होल की स्पिन के आधार पर बनाई गई थी। इसे ब्लैक होल बम थ्योरी का ‘रियल-वर्ल्ड वर्जन’ माना जा रहा है।
क्यों है यह खोज महत्वपूर्ण?
यह प्रयोग एक साधारण उपकरण के ज़रिए उस सिद्धांत को साकार करता है, जिसे अब तक सिर्फ किताबों और थ्योरिटिकल भौतिकी में पढ़ा गया था। इससे यह भी साबित होता है कि ब्लैक होल की ऊर्जा को बाहर निकाला जा सकता है — यह ब्रह्मांडीय ऊर्जा उत्पादन या Renewable Energy के लिए एक नई दिशा हो सकती है। अगर इस तकनीक को और आगे बढ़ाया गया, तो यह भविष्य में उन्नत ऊर्जा स्रोतों की खोज में मददगार साबित हो सकती है।
भविष्य की संभावनाएं
ब्लैक होल बम की इस थ्योरी का प्रयोगशाला में सिद्ध होना न केवल वैज्ञानिकों को ब्लैक होल की संरचना और व्यवहार को समझने में मदद करेगा, बल्कि इससे ऊर्जा उत्पादन के नए मॉडल भी विकसित हो सकते हैं। इसकी मदद से यह समझा जा सकता है कि ब्रह्मांड में ऊर्जा कैसे घूमती है और कैसे ब्लैक होल का स्पिन उसमें योगदान देता है।