Property Tips: प्रॉपर्टी खरीदना एक बड़ा निवेश होता है, जिसमें खरीदार को काफी सावधानी बरतने की जरूरत होती है। सिर्फ रजिस्ट्री ही नहीं, बल्कि कुछ अहम दस्तावेज भी होते हैं, जिन्हें जांचना और समझना आवश्यक होता है। इन दस्तावेजों से प्रॉपर्टी के कानूनी अधिकार, मालिकाना हक, और संभावित विवादों के बारे में पता चलता है। आइए जानते हैं प्रॉपर्टी खरीदते समय किन दस्तावेजों का होना बेहद जरूरी है.
1. सेल डीड (Sale Deed)
सेल डीड प्रॉपर्टी के स्वामित्व को खरीदार के नाम ट्रांसफर करने का एक कानूनी दस्तावेज होता है। यह प्रॉपर्टी की खरीद और बिक्री का प्रमाण होता है। इसे रजिस्ट्रार ऑफिस में पंजीकृत (रजिस्टर्ड) कराना अनिवार्य होता है। खरीदते समय सेल डीड में सभी जानकारी ठीक से देखनी चाहिए, जैसे प्रॉपर्टी का पता, क्षेत्रफल, और बेची गई राशि।
2. खसरा-खतौनी या भूमि रिकॉर्ड
अगर आप जमीन खरीद रहे हैं, तो खसरा-खतौनी या भूमि रिकॉर्ड को चेक करना बहुत जरूरी है। यह दस्तावेज दिखाता है कि जमीन का असली मालिक कौन है और इसके आसपास कौन-कौन से जमीन के टुकड़े हैं। इसे तहसील ऑफिस से प्राप्त किया जा सकता है और इसमें कोई विवाद या अतिक्रमण तो नहीं, यह भी पता चलता है।
3. मूल्यांकन प्रमाणपत्र (Encumbrance Certificate)
यह प्रमाणपत्र इस बात का सबूत है कि प्रॉपर्टी पर किसी प्रकार का बकाया या कानूनी विवाद नहीं है। इसका मतलब यह है कि प्रॉपर्टी क्लियर है और इस पर कोई भी बकाया नहीं है। इसे स्थानीय सब-रजिस्ट्रार ऑफिस से प्राप्त किया जा सकता है और यह आमतौर पर 13-15 साल तक का रिकॉर्ड दिखाता है।
4. प्रॉपर्टी टैक्स रसीद
प्रॉपर्टी टैक्स की रसीद से पता चलता है कि प्रॉपर्टी का टैक्स नियमित रूप से भरा गया है। अगर टैक्स का भुगतान नहीं किया गया है, तो भविष्य में खरीदार को ये बकाया चुकाना पड़ सकता है। इसलिए प्रॉपर्टी का पुराना टैक्स रिकार्ड देखना और यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि सभी टैक्स भुगतान किए गए हैं।
5. नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC)
अगर प्रॉपर्टी का निर्माण किसी सरकारी विभाग या सोसाइटी के अधीन है, तो नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) लेना आवश्यक होता है। यह सर्टिफिकेट बताता है कि किसी भी सरकारी संस्था या सोसाइटी को प्रॉपर्टी के स्वामित्व पर कोई आपत्ति नहीं है।
6. बिल्डर बायर एग्रीमेंट (Builder Buyer Agreement)
अगर आप किसी अंडर-कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी में निवेश कर रहे हैं, तो बिल्डर बायर एग्रीमेंट देखना आवश्यक है। इसमें प्रॉपर्टी के निर्माण की शर्तें, डिलीवरी समय, निर्माण के स्पेसिफिकेशन और भुगतान की शर्तें शामिल होती हैं। यह एग्रीमेंट खरीददार और बिल्डर के बीच एक तरह का समझौता होता है, जो किसी भी विवाद की स्थिति में काफी काम आता है।
7. पासबुक/बैंक स्टेटमेंट और मनी रिसीट
प्रॉपर्टी के लिए जितनी रकम दी जा रही है, उसका पूरा रिकॉर्ड रखना चाहिए। प्रॉपर्टी खरीद में दिए गए सभी भुगतान की रसीद या बैंक स्टेटमेंट को सुरक्षित रखें। इससे खरीदार के पास सभी लेन-देन का प्रमाण होता है, जो बाद में कानूनी मुद्दों से बचा सकता है।
8. अप्रूव्ड प्लान और लेआउट (Approved Plan and Layout)
किसी भी रेजिडेंशियल या कमर्शियल प्रॉपर्टी के निर्माण के लिए स्थानीय अथॉरिटी से प्लान और लेआउट का अप्रूवल जरूरी होता है। अप्रूव्ड प्लान और लेआउट को देखने से यह पता चलता है कि प्रॉपर्टी कानूनी रूप से सही है और नियमों के तहत निर्माण हुआ है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि प्रॉपर्टी पर भविष्य में कोई कानूनी दिक्कत नहीं आएगी।
9. पजेशन लेटर (Possession Letter)
यह लेटर उस समय मिलता है जब प्रॉपर्टी पूरी तरह से तैयार हो जाती है और खरीदार को सौंपी जाती है। इसमें प्रॉपर्टी के कब्जे की तारीख और अन्य शर्तें होती हैं। यह लेटर आमतौर पर बिल्डर द्वारा जारी किया जाता है और खासकर तब जरूरी होता है जब नई कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी खरीदी जाती है।
10. संपत्ति का उत्तराधिकार प्रमाणपत्र (Title Deed)
यह दस्तावेज बताता है कि प्रॉपर्टी का टाइटल यानी मालिकाना हक पूरी तरह से क्लियर है और इसका वर्तमान स्वामी कौन है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रॉपर्टी पर कोई कानूनी विवाद या देनदारी नहीं है, टाइटल डीड का जांच होना आवश्यक है।
प्रॉपर्टी खरीदते समय सिर्फ रजिस्ट्री करवाना ही काफी नहीं है। ऊपर बताए गए दस्तावेजों की जांच करना अनिवार्य है ताकि भविष्य में किसी भी प्रकार की कानूनी समस्या से बचा जा सके।