भारत-नेपाल सीमा पर स्थित रक्सौल एयरपोर्ट, जो 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान सेना के विमानों की आपात लैंडिंग के लिए विकसित किया गया था, एक बार फिर चर्चा में है। छह दशक बाद, यह एयरपोर्ट नागरिक सेवाओं के लिए तैयार किया जा रहा है, जिससे न केवल इस क्षेत्र की आर्थिकी में सुधार होगा बल्कि सुरक्षा प्रबंध भी सुदृढ़ होंगे। केंद्र और राज्य सरकारों की संयुक्त पहल से यह परियोजना तेजी से अपने अंतिम चरण में पहुंच रही है।
139 एकड़ भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया तेज
रक्सौल एयरपोर्ट के विस्तार के लिए 139 एकड़ नई जमीन अधिग्रहित की जा रही है। पहले से उपलब्ध 137 एकड़ भूमि के साथ यह अधिग्रहण एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (AAI) के तहत किया जाएगा। भूमि चिह्नित करने, उसकी पैमाइश और खसरा पंजी तैयार करने का काम लगभग पूरा हो चुका है। अब अधियाचना की प्रक्रिया पूरी होते ही भूमि अधिग्रहण के अगले चरण में कदम बढ़ाया जाएगा।
सरकारी सहयोग और निगरानी
इस महत्वाकांक्षी परियोजना को लेकर केंद्र और राज्य सरकारें पूरी तत्परता से काम कर रही हैं। 6 दिसंबर 2024 को राज्य सरकार के मुख्य सचिव की अगुवाई में एक समीक्षा बैठक आयोजित की गई। इसके बाद 24 दिसंबर को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साफ किया कि राज्य सरकार एयरपोर्ट के लिए आवश्यक सभी जमीन उपलब्ध कराएगी।
आर्थिक और सुरक्षा लाभ
एयरपोर्ट के निर्माण और नागरिक उड़ानों की शुरुआत से यह क्षेत्र एक प्रमुख आर्थिक केंद्र में बदल जाएगा। भारत-नेपाल की अंतरराष्ट्रीय सीमा से नजदीकी के कारण सुरक्षा प्रबंधन को भी बेहतर किया जा सकेगा। जानकारों का कहना है कि इस एयरपोर्ट के शुरू होने से सटे हुए गांवों और कस्बों को व्यापारिक और औद्योगिक गतिविधियों का लाभ मिलेगा।
इतिहास में 62 साल का लंबा इंतजार
रक्सौल एयरपोर्ट की स्थापना 1962-63 में चीन से संभावित खतरे को देखते हुए की गई थी। उस समय, इसका उद्देश्य सेना के विमानों की लैंडिंग सुनिश्चित करना था। लंबे समय तक निष्क्रिय रहने के बाद, इसे केंद्र सरकार की उड़ान योजना के तहत फिर से सक्रिय किया जा रहा है। यह योजना आम नागरिकों को किफायती हवाई यात्रा का सपना साकार करने में मदद कर रही है।
भविष्य की योजना और प्रक्रिया
139 एकड़ अतिरिक्त भूमि अधिग्रहण के लिए रक्सौल अंचल के छह गांवों, जिनमें चिकनी, सिंहपुर, सिसवा, एकडेरवा, भरतमही और चंदौली शामिल हैं, से लगभग 400 रैयतों की जमीन ली जाएगी। एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया इस अधिग्रहित भूमि पर निर्माण कार्य की जिम्मेदारी लेगी।