
दुनिया के नक्शे पर हाल ही में एक नया देश उभरने का दावा किया गया है—“रिपब्लिक ऑफ बलोचिस्तान”। 8 मई 2025 को बलोच नेता मीर यार बलोच ने पाकिस्तान से स्वतंत्रता की औपचारिक घोषणा की और भारत समेत संयुक्त राष्ट्र से इस नवगठित राष्ट्र को मान्यता देने की अपील की है। बलोचिस्तान लंबे समय से पाकिस्तान के एक अशांत प्रांत के रूप में जाना जाता रहा है, लेकिन इस बार आवाज़ पहले से कहीं अधिक संगठित और वैश्विक मंचों पर उठ रही है। इस बीच, भारत के लिए यह एक नया कूटनीतिक मोड़ बनकर उभर रहा है।
यह भी देखें: वैज्ञानिकों की चेतावनी से हिली दुनिया, दो हिस्सों में बंट जाएंगे ये देश होगी भीषण तबाही Global Disaster Warning
बलोचिस्तान की आज़ादी की घोषणा
बलोचिस्तान की स्वतंत्रता की घोषणा कोई आकस्मिक घटना नहीं है। यह दशकों पुरानी असंतोष और संघर्ष की परिणति है। पाकिस्तान में बलोचिस्तान वह क्षेत्र है जहाँ प्राकृतिक संसाधनों की भरमार है, लेकिन स्थानीय लोगों को लंबे समय से उपेक्षित महसूस होता रहा है। बलोचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) जैसे संगठनों ने समय-समय पर पाकिस्तान के खिलाफ विद्रोह और हिंसक हमलों को अंजाम दिया है। मीर यार बलोच द्वारा की गई यह घोषणा इस संघर्ष को एक औपचारिक राजनीतिक दिशा देने का प्रयास है, जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से संयुक्त राष्ट्र और भारत से समर्थन मांगा है। उन्होंने यहां तक कह दिया है कि वे भारत में बलोच दूतावास खोलना चाहते हैं।
भारत की रणनीतिक स्थिति और संभावनाएं
भारत सरकार ने अभी तक “रिपब्लिक ऑफ बलोचिस्तान” की स्वतंत्रता पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। लेकिन इस विषय पर विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है। कुछ मानते हैं कि भारत को पाकिस्तान के बढ़ते आतंकवाद और आंतरिक अस्थिरता को देखते हुए इस नए देश को मान्यता देने पर विचार करना चाहिए। वहीं कुछ रणनीतिकार मानते हैं कि ऐसा कोई कदम भारत की विदेश नीति में संतुलन बिगाड़ सकता है और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चुनौतियां उत्पन्न कर सकता है।
भारत के पास इस मुद्दे को रणनीतिक लाभ के तौर पर देखने का मौका भी है। बलोचिस्तान में चीनी निवेश, खासकर चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के चलते चीन की मौजूदगी भारत के लिए सुरक्षा की दृष्टि से चिंताजनक रही है। अगर भारत बलोचिस्तान को समर्थन देता है, तो यह पाकिस्तान और चीन के साझा प्रोजेक्ट को चुनौती देने का मंच बन सकता है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया
संयुक्त राष्ट्र में किसी भी नए देश को मान्यता दिलवाना आसान नहीं होता। इसके लिए अधिकांश सदस्य देशों का समर्थन आवश्यक होता है। वर्तमान में “रिपब्लिक ऑफ बलोचिस्तान” को किसी भी देश या संगठन से औपचारिक मान्यता नहीं मिली है। इसके बावजूद बलोच नेताओं की ओर से इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय अदालतों और मंचों पर ले जाने की योजना भी सामने आ रही है।
कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, बलोच प्रतिनिधि यूरोप और अमेरिका में भी राजनयिक समर्थन जुटाने की कोशिश में हैं। इस बीच पाकिस्तान ने इस घोषणा को सिरे से खारिज कर दिया है और इसे ‘विदेशी प्रायोजित साजिश’ बताया है। इससे यह स्पष्ट है कि आने वाले समय में इस विवाद की गूंज सिर्फ दक्षिण एशिया ही नहीं, बल्कि वैश्विक मंचों तक सुनाई दे सकती है।
राजनीतिक विश्लेषण और संभावित भविष्य
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर बलोचिस्तान को किसी बड़े देश का समर्थन मिलता है—जैसे भारत, अमेरिका या किसी यूरोपीय राष्ट्र का—तो इसका दबाव पाकिस्तान और चीन पर बढ़ेगा। इससे न सिर्फ क्षेत्रीय सुरक्षा ढांचे में परिवर्तन होगा, बल्कि वैश्विक कूटनीति में भी नई चालें चले जाने लगेंगी।
हालाँकि भारत के लिए यह फैसला आसान नहीं है। एक तरफ पाकिस्तान और चीन के खिलाफ रणनीतिक बढ़त बनाने का अवसर है, वहीं दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संतुलन साधने की चुनौती भी है। भारत की “नो इंटरफियरेंस पॉलिसी” और “सॉवरेनिटी रेस्पेक्ट” जैसी विदेश नीति मूल्यों के साथ तालमेल बैठाना आवश्यक होगा।
यह भी देखें: Fake Medicine vs Real: ये ट्रिक बताएगी दवा असली है या नकली मात्र 2 सेकंड में, देखें अभी