मध्य प्रदेश हाई कोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने हाल ही में एक लिव-इन रिलेशनशिप (Live-in Relationship) से संबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। इंदौर बेंच के जस्टिस सुबोध अभ्यंकर (Justice Subodh Abhyankar) की एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि कोई व्यक्ति 18 वर्ष की आयु पूरी कर चुका है, तो उसे अपनी पसंद से जीवन जीने का अधिकार है। इस अधिकार को बाहरी हस्तक्षेप से संरक्षित किया जाना चाहिए।
इस याचिका में 18 वर्षीय युवक और युवती ने परिवार की नाराजगी के कारण अदालत से साथ रहने की अनुमति मांगी थी। अदालत ने उनकी परिस्थितियों को समझते हुए यह फैसला दिया, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप में केवल आयु का मानक पर्याप्त नहीं होता, बल्कि मानसिक और आर्थिक परिपक्वता का होना भी उतना ही आवश्यक है।
तनावपूर्ण पारिवारिक माहौल से निकलने की कोशिश
युवती ने अदालत में बताया कि उसकी मां के देहांत के बाद घर का माहौल तनावपूर्ण हो गया था। इस कारण उसने अपने साथी के साथ रहने का निर्णय लिया। अदालत ने यह समझते हुए कहा कि युवती के फैसले को व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के रूप में देखा जाना चाहिए, लेकिन इस तरह के निर्णयों के दीर्घकालिक प्रभावों पर भी विचार करना जरूरी है।
कोर्ट की हिदायतें और निर्णय
High Court ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप में प्रवेश करने के लिए न केवल उम्र बल्कि जिम्मेदारी और आर्थिक आत्मनिर्भरता भी महत्वपूर्ण है। अदालत ने पुलिस अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि इस जोड़े को किसी भी प्रकार का बाहरी हस्तक्षेप न झेलना पड़े।
इस फैसले में न्यायालय ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता के महत्व को रेखांकित किया और इसे समाज में बदलाव का प्रतीक बताया। साथ ही, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि स्वतंत्रता के साथ जिम्मेदारी निभाना उतना ही आवश्यक है।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता बनाम सामाजिक जिम्मेदारी
इस केस ने एक बड़ा सामाजिक संदेश दिया कि व्यक्तिगत अधिकारों का सम्मान होना चाहिए, लेकिन स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि स्वतंत्रता के साथ जिम्मेदारी निभाने की परिपक्वता होनी चाहिए ताकि इस तरह के फैसले भविष्य में कठिनाइयों का कारण न बनें।
जस्टिस सुबोध अभ्यंकर ने अपने फैसले में कहा कि इस निर्णय से समाज में व्यक्तिगत अधिकारों के प्रति सम्मान बढ़ेगा और यह नए सामाजिक विचारों को प्रोत्साहित करेगा।
युवा पीढ़ी के लिए सीख
अदालत ने अपने आदेश में युवा पीढ़ी को यह संदेश दिया कि जीवन के बड़े फैसले सोच-समझकर लेने चाहिए। मानसिक और आर्थिक परिपक्वता के बिना उठाए गए कदम भविष्य में कठिनाइयों का कारण बन सकते हैं। यह निर्णय न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थन करता है, बल्कि सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारियों को भी रेखांकित करता है।