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क्यों मस्जिदों पर हो रहे दावे? अजमेर दरगाह पर विवाद को लेकर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के वंशज ने किया बड़ा बयान!

राजस्थान के अजमेर दरगाह पर मंदिर के दावे को लेकर विवाद बढ़ा है। सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने इस पर चिंता जताते हुए सरकार से अपील की कि धार्मिक स्थलों पर ऐसे विवादों को रोकने के लिए कानून बनाया जाए, ताकि समाज में शांति और एकता बनी रहे।

By PMS News
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क्यों मस्जिदों पर हो रहे दावे? अजमेर दरगाह पर विवाद को लेकर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के वंशज ने किया बड़ा बयान!
Controversy over Ajmer Dargah

राजस्थान के अजमेर स्थित प्रसिद्ध दरगाह को लेकर हाल ही में एक विवाद उठ खड़ा हुआ है, जिसमें यह दावा किया जा रहा है कि इस दरगाह के स्थल पर पहले एक शिव मंदिर था। यह दावा हिंदू पक्ष द्वारा किया गया है और इसे लेकर कोर्ट में मामला दायर किया गया है। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए, भारतीय न्यायालय ने संबंधित पक्षों को नोटिस भेजने का आदेश दिया है। नोटिस उन पक्षों को भेजे गए हैं, जिनमें अजमेर दरगाह कमेटी, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय शामिल हैं। इस मामले की अगली सुनवाई 20 दिसंबर को निर्धारित की गई है।

यह मामला न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी संवेदनशील है, क्योंकि यह विभिन्न समुदायों के बीच तनाव और असहमति का कारण बन सकता है। हिंदू पक्ष का दावा है कि दरगाह के स्थल पर पहले एक शिव मंदिर था, जबकि मुस्लिम समुदाय इसे अपनी धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहर मानता है। इस प्रकार का दावा दोनों समुदायों के बीच विवाद उत्पन्न कर रहा है, जिसके बाद इस मामले को कोर्ट तक पहुंचाया गया है।

सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती का बयान

इस विवाद में मुस्लिम समुदाय की ओर से महत्वपूर्ण बयान सामने आया है, जो ऑल इंडिया सूफी सज्जादानशीन काउंसिल के अध्यक्ष और ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के वंशज, सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती की ओर से आया है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि मुस्लिम समुदाय इस मामले में पूरी तरह से सतर्क है और हर संभव कानूनी कदम उठाएगा। उन्होंने कहा, “हमने इस मामले पर पूरी तरह से नजर बनाई हुई है और अगर हमें जरूरत पड़ी, तो हम अपने पक्ष को पूरी मजबूती से कोर्ट में प्रस्तुत करेंगे।”

चिश्ती ने यह भी स्पष्ट किया कि इस विवाद में शामिल पक्षों में अजमेर दरगाह कमेटी, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI), और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय शामिल हैं, जो इस मामले को उचित तरीके से हल करने के लिए काम कर रहे हैं। उनके अनुसार, यह दरगाह सिर्फ मुस्लिम समुदाय से ही नहीं, बल्कि पूरे दुनिया के विभिन्न धार्मिक समुदायों से जुड़ी हुई है, और इसे किसी भी तरह के विवाद का हिस्सा नहीं बनाया जाना चाहिए।

मस्जिद और धार्मिक स्थलों पर बढ़ते विवाद

सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने इस मुद्दे पर गहरी चिंता जताई कि अब देशभर में आए दिन धार्मिक स्थलों को लेकर नए-नए विवाद उठ रहे हैं। कभी किसी मस्जिद में मंदिर होने का दावा किया जाता है, तो कभी किसी दरगाह के स्थल को लेकर यही दावे किए जाते हैं। उनका मानना है कि इस तरह के विवादों से केवल देश में धार्मिक तनाव बढ़ता है और इससे समाज में नफरत फैलने का खतरा होता है।

उन्होंने कहा, “हमारे देश में इन दिनों धार्मिक स्थलों पर विवाद उठने का सिलसिला बढ़ गया है, जो केवल समाज में असहमति और घृणा को बढ़ावा दे रहा है। यह देश के लिए और हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है।” चिश्ती ने यह भी कहा कि भारत को इस समय एकता की आवश्यकता है, क्योंकि देश वैश्विक शक्ति बनने की ओर बढ़ रहा है और इस प्रकार के विवादों में उलझना भारत की प्रगति के लिए हितकारी नहीं होगा।

धार्मिक स्थलों को लेकर उठने वाले विवादों का समाज पर प्रभाव

सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने धार्मिक स्थलों पर चल रहे विवादों को न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी खतरनाक बताया। उन्होंने कहा कि इन विवादों से लाखों-करोड़ों लोगों की आस्था को ठेस पहुंचती है। “जब हम धार्मिक स्थलों पर इस प्रकार के विवाद उठाते हैं, तो इसका सीधा असर उन लोगों पर पड़ता है, जो इन स्थलों से गहरी आस्था रखते हैं। इस तरह के विवाद समाज को बांटने का काम करते हैं और सामाजिक ताने-बाने को कमजोर कर देते हैं।”

चिश्ती ने कहा कि अजमेर दरगाह एक ऐसा स्थल है जो केवल मुस्लिम समुदाय के लिए नहीं, बल्कि हिंदू, सिख, ईसाई और अन्य धर्मों के लोग भी इसे श्रद्धा से देखते हैं। यह स्थल शांति और भाईचारे का प्रतीक है, और इसे विवादों का हिस्सा नहीं बनाना चाहिए। उन्होंने उदाहरण दिया कि अजमेर दरगाह के प्रति दुनिया भर के विभिन्न धर्मों के लोग श्रद्धा रखते हैं, और इसे सभी के लिए एक धार्मिक स्थल माना जाता है।

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सरकार से कानून बनाने की अपील

सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने भारत सरकार से अपील की कि धार्मिक स्थलों को लेकर इस तरह के विवादों को रोकने के लिए एक ठोस कानून या गाइडलाइन बनाई जाए। उनका कहना था कि देश में इस समय ऐसे धार्मिक विवादों की संख्या बढ़ रही है, जो समाज को बिखेरने और लोगों के बीच घृणा फैलाने का काम कर रहे हैं।

चिश्ती ने कहा, “अगर सरकार इस प्रकार के विवादों पर काबू पाने के लिए कोई ठोस कानून या दिशा-निर्देश नहीं बनाती, तो यह स्थिति और अधिक बिगड़ सकती है। हमें ऐसे धार्मिक स्थलों पर उंगली उठाने से बचने के लिए कानूनी ढांचा तैयार करना चाहिए, जो समाज में शांति और एकता बनाए रखने में मदद करें।”

मोहन भागवत का बयान

सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने RSS प्रमुख मोहन भागवत के 2022 में दिए गए बयान का भी उल्लेख किया, जिसमें भागवत ने मस्जिदों में शिवालय खोजने की प्रवृत्ति पर सवाल उठाए थे। मोहन भागवत ने यह पूछा था कि आखिर क्यों हर मस्जिद में शिवालय खोजने का प्रयास किया जा रहा है।

चिश्ती ने इस बयान से सहमति जताई और इसे समाज के लिए नुकसानदायक बताया। उनका मानना है कि ऐसे विवादों से कुछ हासिल नहीं होता है, बल्कि इससे केवल समाज में नफरत और विभाजन बढ़ता है। उनका कहना था कि यदि हम इस प्रकार के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करेंगे, तो यह हमारे समाज की एकता और सद्भाव को कमजोर करेगा।

850 साल पुराना इतिहास

सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने अजमेर दरगाह के ऐतिहासिक महत्व पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि इस दरगाह का इतिहास 850 साल पुराना है और यह हमेशा से शांति, मुहब्बत, और भाईचारे का संदेश देती रही है। दरगाह की प्रतिष्ठा केवल मुस्लिमों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अन्य धर्मों के लोगों के लिए भी एक सम्मानजनक स्थल है।

चिश्ती ने कहा, “यह दरगाह लाखों लोगों की श्रद्धा का केंद्र है और यह धर्म, जाति और समुदाय से परे एकता का प्रतीक है। किसी भी व्यक्ति या समूह का यह प्रयास कि इस दरगाह के इतिहास को नकारात्मक रूप से प्रस्तुत किया जाए, यह न केवल उस स्थल की आस्था को ठेस पहुंचाता है, बल्कि समाज को भी बांटने का काम करता है।”

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