
जब आपसे भारत की राजधानी के बारे में पूछा जाएगा, तो आप तुरंत कहेंगे कि यह नई दिल्ली है, जिसे ब्रिटिश ने स्थापित किया था। लेकिन क्या आप जानते हैं, कि भारतीय इतिहास में एक समय ऐसा भी आया था, जब एक जिले को सिर्फ एक दिन के लिए देश की राजधानी बना दिया गया था? यह ऐतिहासिक घटना भले ही बहुत कम समय के लिए रही हो, लेकिन यह हमेशा के लिए भारतीय इतिहास के पन्नों में आज भी दर्ज हो गई।
भारत के इतिहास में बदलती राजधानी
भारत में कई बार राजधानी बदली है। प्राचीन समय में पाटलिपुत्र, कोलकाता, शिमला और धर्मशाला जैसे शहरों को भारत की राजधानी बनने का गौरव प्राप्त हुआ है। ये शहर अपनी ऐतिहासिक भूमिका के लिए प्रसिद्ध हैं। लेकिन एक घटना ऐसी भी है, जिसमें एक शहर नहीं, बल्कि एक जिला भारत की राजधानी बना था, और वह भी सिर्फ एक दिन के लिए। यह घटना भारतीय इतिहास का एक अनोखा हिस्सा है।
वह जिला जो एक दिन के लिए बना राजधानी
यह जिला उत्तर प्रदेश राज्य का प्राचीन शहर इलाहाबाद है, जिसे अब प्रयागराज के नाम से जाना जाता है। प्रयागराज का नाम बदलने से पहले, यह इलाहाबाद के नाम से मशहूर था। यह ऐतिहासिक घटना जहां प्रयागराज को एक दिन के लिए भारत की राजधानी बना दिया गया था, यह भारतीय इतिहास में एक अनोखा और विशेष क्षण बन गया। प्रयागराज शहर को धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है, खासकर गंगा और यमुन की संगम भूमि के कारण। इसे “संगम सिटी” के नाम से भी जाना जाता है, जो इसे एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बनाता है।
कब बना प्रयागराज भारत की राजधानी?
प्रयागराज का एक दिन के लिए भारत की राजधानी बनने का ऐतिहासिक अवसर 14 मार्च 1858 को हुआ। यह वह समय था जब भारतीय स्वतंत्रता संग्राम 1857, जिसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है, के बाद ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत में शासन की बागडोर संभाली थी। इस समय ब्रिटिश सरकार ने भारत के प्रशासन को सीधे तौर पर अपने हाथों में लिया था, और इसके तहत प्रयागराज (तब इलाहाबाद) को एक दिन के लिए भारत की राजधानी घोषित किया गया।
यह घटना उस समय घटी जब इलाहाबाद उत्तर-पश्चिम प्रांत (North-West Provinces) का हिस्सा था। ब्रिटिश प्रशासन ने उस समय के जटिल हालातों के चलते इलाहाबाद को अस्थायी राजधानी बनाया। हालांकि यह सिर्फ एक दिन के लिए था, लेकिन इसने भारत के प्रशासनिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ दिया।
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क्यों बना प्रयागराज एक दिन के लिए राजधानी?
प्रयागराज को अस्थायी राजधानी बनाने का निर्णय कुछ विशेष कारणों से लिया गया था। उस समय इलाहाबाद ब्रिटिश प्रशासन का एक प्रमुख केंद्र था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना यहां की गई थी, और इलाहाबाद उच्च न्यायालय भी ब्रिटिश शासन के दौरान यहां स्थापित किया गया था। इसके अलावा, यमुना नदी के किनारे स्थित अकबर के किले ने यहां एक सैन्य और प्रशासनिक महत्व जोड़ा था।
इन सभी कारणों से इलाहाबाद (अब प्रयागराज) एक उपयुक्त स्थान था, जहां ब्रिटिश शासन अपनी व्यवस्था को बेहतर तरीके से संभाल सकता था। हालांकि, एक दिन के बाद, राजधानी को कोलकाता दूसरे स्थान पर रख दिया गया, और अंत में 1912 में ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम ने नई दिल्ली को भारत की स्थायी राजधानी घोषित किया।
प्रयागराज का इतिहास और महत्व
भले ही प्रयागराज ने सिर्फ एक दिन के लिए भारत की राजधानी बनने का गौरव प्राप्त किया, लेकिन इस घटना का ऐतिहासिक महत्व सदियों तक याद रखा जाएगा। यह घटना ब्रिटिश शासन के भारतीय प्रशासन में महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक थी। आज भी प्रयागराज का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व बरकरार है। यह शहर भारतीय संस्कृति और धर्म का महत्वपूर्ण हिस्सा बना हुआ है। यहां हर वर्ष कुम्भ मेला आयोजित किया जाता है, जिसमें दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु आते हैं।