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IMF लोन के पीछे की असली कहानी! पैसा आता कहां से और किन शर्तों पर मिलता है?

जब कोई देश आर्थिक संकट में फंसता है, तो IMF मदद का हाथ बढ़ाता है, लेकिन क्या ये मदद वाकई राहत लाती है या छीन लेती है आर्थिक आज़ादी? जानिए IMF लोन की पूरी सच्चाई: पैसा कहां से आता है, किन शर्तों पर दिया जाता है, और कैसे इसकी कीमत आम जनता को सब्सिडी, महंगाई और बेरोजगारी के रूप में चुकानी पड़ती है।

By PMS News
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IMF लोन के पीछे की असली कहानी! पैसा आता कहां से और किन शर्तों पर मिलता है?
IMF लोन के पीछे की असली कहानी! पैसा आता कहां से और किन शर्तों पर मिलता है?

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund – IMF) वैश्विक आर्थिक स्थिरता बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब कोई देश भुगतान संतुलन (Balance of Payments) संकट का सामना करता है और विदेशी मुद्रा भंडार की कमी से जूझता है, तब IMF उस देश को वित्तीय सहायता प्रदान करता है। इस प्रक्रिया में IMF न केवल आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करता है, बल्कि सदस्य देशों को वैश्विक आर्थिक प्रणाली में फिर से स्थापित करने में भी मदद करता है।

IMF का पैसा आखिर आता कहां से है?

IMF के पास मौजूद फंड मुख्य रूप से तीन स्रोतों से आते हैं। सबसे पहला और महत्वपूर्ण स्रोत है सदस्य देशों की “कोटा सदस्यता” (Quotas)। जब कोई देश IMF का सदस्य बनता है, तो उसे एक निश्चित आर्थिक योगदान देना होता है, जिसे कोटा कहा जाता है। यह कोटा देश की अर्थव्यवस्था के आकार, विदेशी व्यापार और वैश्विक अर्थव्यवस्था में उसकी भूमिका के अनुसार तय किया जाता है। यह IMF के कुल फंड का सबसे बड़ा हिस्सा होता है।

दूसरे स्रोत के रूप में आती है “नई उधारी व्यवस्थाएं” (New Arrangements to Borrow – NAB)। यह एक विशेष व्यवस्था होती है जिसमें IMF और कुछ प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के बीच यह समझौता होता है कि जब IMF को अतिरिक्त फंड की आवश्यकता होगी, तो ये देश IMF को कर्ज देंगे।

तीसरा स्रोत है “द्विपक्षीय उधारी समझौते” (Bilateral Borrowing Agreements)। इसमें IMF किसी सदस्य देश से प्रत्यक्ष तौर पर उधारी लेकर अपनी वित्तीय क्षमता को बढ़ाता है। ये समझौते समय-समय पर जरूरत के अनुसार सक्रिय किए जाते हैं।

ऋण के बदले IMF क्या शर्तें लगाता है?

IMF द्वारा दिए जाने वाले ऋण पर कुछ विशेष शर्तें लागू होती हैं जिन्हें “कंडीशनलिटी” (Conditionality) कहा जाता है। इन शर्तों का मकसद यह होता है कि ऋण लेने वाला देश अपने आर्थिक तंत्र में सुधार करे और इस सहायता का सही उपयोग करते हुए समय पर ऋण चुका सके।

इन शर्तों में सबसे प्रमुख होती है “राजकोषीय अनुशासन”, जिसके तहत सरकार को अपने खर्चों में कटौती करनी होती है और करों या अन्य माध्यमों से राजस्व बढ़ाना होता है। इसके अलावा, “मौद्रिक नीति में सुधार” की मांग की जाती है ताकि मुद्रास्फीति पर नियंत्रण पाया जा सके।

IMF “विनिमय दर में लचीलापन” की शर्त भी रखता है जिससे विदेशी मुद्रा का प्रवाह अधिक सहज हो सके। वहीं “संरचनात्मक सुधार” के तहत सरकार से यह अपेक्षा की जाती है कि वह सरकारी उपक्रमों का निजीकरण करे, व्यापार को उदार बनाए और विदेशी निवेश को प्रोत्साहन दे।

पाकिस्तान का हालिया उदाहरण इसका प्रमाण है। IMF से नए ऋण के लिए पाकिस्तान को 11 नई शर्तों को पूरा करना पड़ा, जिससे कुल शर्तों की संख्या 50 हो गई। इसमें न केवल आर्थिक सुधार शामिल थे, बल्कि प्रशासनिक पारदर्शिता और नीति सुधार भी अनिवार्य थे।

IMF किन प्रकार के ऋण देता है?

IMF सदस्य देशों की अलग-अलग आवश्यकताओं और आर्थिक स्थितियों के अनुसार विभिन्न प्रकार के ऋण योजनाएं प्रदान करता है। “स्टैंड-बाय अरेंजमेंट” (Stand-By Arrangement – SBA) अल्पकालिक भुगतान संतुलन की दिक्कतों को दूर करने के लिए होती है। वहीं, “एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी” (Extended Fund Facility – EFF) दीर्घकालिक आर्थिक सुधार के लिए दी जाती है।

“पावर्टी रिडक्शन एंड ग्रोथ ट्रस्ट” (Poverty Reduction and Growth Trust – PRGT) विशेष रूप से कम आय वाले देशों को रियायती दर पर ऋण उपलब्ध कराता है ताकि वे गरीबी उन्मूलन और विकास को गति दे सकें। “रैपिड फाइनेंसिंग इंस्ट्रूमेंट” (Rapid Financing Instrument – RFI) आपातकालीन परिस्थितियों में तत्काल सहायता के लिए कार्य करता है, जैसे कि प्राकृतिक आपदा या महामारी की स्थिति।

IMF की ऋण नीति पर क्यों होती है आलोचना?

IMF की ऋण नीति अक्सर विकासशील देशों में आलोचना का विषय बन जाती है। इसकी पहली वजह होती है ऋण के साथ जुड़ी कठोर शर्तें, जो सामाजिक सेवाओं—जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और सार्वजनिक कल्याण योजनाओं—पर सीधा असर डालती हैं। सरकारें जब IMF की शर्तों के तहत खर्चों में कटौती करती हैं, तो इसका असर आम जनता पर पड़ता है।

दूसरी बड़ी आलोचना यह होती है कि IMF की शर्तें देश की आर्थिक संप्रभुता पर असर डालती हैं। कई बार सरकारों को IMF की सलाह पर ऐसे फैसले लेने पड़ते हैं जो स्थानीय राजनीति या समाज के हित में नहीं होते।

तीसरी और सबसे गंभीर आलोचना सामाजिक असमानता बढ़ने को लेकर होती है। IMF की नीतियों से अक्सर गरीब वर्ग पर बोझ बढ़ता है क्योंकि सरकारी सब्सिडी और सेवाओं में कटौती की जाती है। केन्या इसका ज्वलंत उदाहरण है, जहां IMF ऋण शर्तों के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। लोगों ने सरकार पर IMF के सामने झुकने और देश की आर्थिक दुर्दशा के लिए उसे जिम्मेदार ठहराया।

भारत और IMF: क्या रहा है रिश्ता?

भारत का IMF के साथ रिश्ता दशकों पुराना है। 1991 के आर्थिक संकट के दौरान भारत ने IMF से कर्ज लिया था और इसके बदले कई आर्थिक सुधार लागू किए गए थे, जिनमें विनियमन में ढील, व्यापार उदारीकरण और निजीकरण प्रमुख थे। यह सुधार आगे चलकर भारत की अर्थव्यवस्था को गति देने में निर्णायक साबित हुए। हाल के वर्षों में भारत ने IMF से प्रत्यक्ष ऋण नहीं लिया है, लेकिन वैश्विक नीतिगत संवाद और सलाहकार भूमिका में IMF की भागीदारी लगातार बनी हुई है।

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