सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में संपत्ति के बंधक लेनदेन से संबंधित एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि यदि बंधक विलेख (Mortgage Deed) में यह शर्त दर्ज है कि निर्धारित समयसीमा के भीतर भुगतान न करने पर बंधक (Mortgage) “सशर्त बिक्री” (Conditional Sale) में परिवर्तित हो जाएगा, तो यह संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 58(c) के अंतर्गत वैध माना जाएगा। यह निर्णय ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट के पहले के फैसलों को पलटते हुए दिया गया।
क्या था मामला?
इस विवाद का आरंभ 1990 में हुआ, जब वादी ने प्रतिवादी को ₹75,000 की राशि के बदले एक सूट संपत्ति गिरवी रखी। दोनों पक्षों के बीच यह सहमति हुई कि वादी तीन साल के भीतर ₹1,20,000 (मूल राशि और ब्याज) का भुगतान करके संपत्ति को पुनः प्राप्त कर सकता है। बंधक विलेख में एक शर्त जोड़ी गई थी कि अगर वादी निर्धारित समय के भीतर भुगतान करने में असफल रहता है, तो संपत्ति का स्वामित्व स्वतः प्रतिवादी को हस्तांतरित हो जाएगा।
1993 में वादी ने ₹1,20,000 चुकाकर संपत्ति छुड़ाने का प्रयास किया, लेकिन प्रतिवादी ने भुगतान स्वीकार करने से इनकार कर दिया। प्रतिवादी का तर्क था कि भुगतान की समयसीमा समाप्त हो चुकी थी और बंधक विलेख की शर्तों के अनुसार अब संपत्ति का पूर्ण स्वामित्व उसके पास है। इस असहमति के कारण वादी ने ट्रायल कोर्ट में मुकदमा दायर किया।
ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट का निर्णय
ट्रायल कोर्ट ने वादी के पक्ष में निर्णय देते हुए कहा कि बंधक विलेख की शर्त ‘मोचन की इक्विटी’ (Equity of Redemption) पर एक अवरोध थी। ट्रायल कोर्ट ने वादी को ₹1,20,000 का भुगतान करके संपत्ति छुड़ाने की अनुमति दी। हाईकोर्ट ने इस निर्णय को बरकरार रखा, लेकिन प्रतिवादी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्णयों को पलटते हुए कहा कि यह मामला “सशर्त बिक्री द्वारा बंधक” (Mortgage by Conditional Sale) के अंतर्गत आता है और वादी का दावा वैध नहीं है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की खंडपीठ ने अपने निर्णय में निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाला:
1. कब्जे की प्रकृति
वादी का संपत्ति पर कब्जा “अनुमेय कब्जा” (Permissive Possession) था, जो केवल संपत्ति की सुरक्षा के उद्देश्य से दिया गया था। यह कब्जा स्वामित्व का प्रमाण नहीं है। अदालत ने कहा कि वादी का कब्जा बंधक विलेख की शर्तों को नकारने के लिए पर्याप्त नहीं है।
2. बंधक विलेख की शर्तें
बंधक विलेख में स्पष्ट रूप से यह निर्दिष्ट था कि यदि वादी निर्धारित समय सीमा के भीतर भुगतान करने में विफल रहता है, तो संपत्ति का स्वामित्व प्रतिवादी को हस्तांतरित हो जाएगा। इस शर्त ने संपत्ति को “सशर्त बिक्री” के तहत लाने की सभी कानूनी आवश्यकताओं को पूरा किया।
3. पार्टियों का इरादा
अदालत ने कहा कि बंधक विलेख और पार्टियों के इरादे से यह स्पष्ट था कि यह लेनदेन सशर्त बिक्री द्वारा बंधक का था। वादी और प्रतिवादी दोनों इस बात पर सहमत थे कि संपत्ति का स्वामित्व केवल तभी प्रतिवादी को हस्तांतरित होगा, जब वादी निर्धारित समय में भुगतान करने में असफल रहेगा।
4. ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट की त्रुटियां
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने बंधक विलेख की स्पष्ट शर्तों और वादी के कब्जे की अनुमेय प्रकृति पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने बंधक विलेख की शर्तों की गलत व्याख्या की और इसे “साधारण बंधक” (Simple Mortgage) के रूप में देखा, जबकि यह “सशर्त बिक्री द्वारा बंधक” था।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बंधक विलेख की शर्त “मोचन की इक्विटी” पर बाधा नहीं थी, बल्कि यह लेनदेन की प्रकृति को परिभाषित करने के लिए एक वैध शर्त थी।
- वादी का संपत्ति पर कब्जा केवल एक अनुमेय व्यवस्था थी और इसे स्वामित्व का दावा करने के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बंधक विलेख की शर्तें धारा 58(c) के तहत सशर्त बिक्री द्वारा बंधक के सभी कानूनी तत्वों को पूरा करती हैं।