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Supreme Court का बड़ा फैसला, ऐसे बच्चों का नहीं सरकारी कर्मचारी की पारिवारिक पेंशन पर हक

सरकारी कर्मचारी की मौत के बाद गोद ली गई संतान को पारिवारिक पेंशन नहीं मिलेगी! जानिए सुप्रीम कोर्ट के इस अहम निर्णय का आपके परिवार पर क्या असर पड़ेगा और कैसे बदलेंगे पेंशन के नियम

By PMS News
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Supreme Court का बड़ा फैसला, ऐसे बच्चों का नहीं सरकारी कर्मचारी की पारिवारिक पेंशन पर हक
Supreme Court का बड़ा फैसला, ऐसे बच्चों का नहीं सरकारी कर्मचारी की पारिवारिक पेंशन पर हक

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में सरकारी कर्मचारी की पेंशन के उत्तराधिकारी के संदर्भ में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) के 2015 के आदेश को बरकरार रखते हुए यह स्पष्ट किया कि सरकारी कर्मचारी की मौत के बाद उनके पति या पत्नी द्वारा गोद ली गई संतान पारिवारिक पेंशन (Family Pension) की हकदार नहीं होगी। इस फैसले ने सिविल सेवा पेंशन नियम 1972 के भाग 54 (14B) को मजबूती से स्थापित किया है।

पारिवारिक पेंशन का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय में जस्टिस केएम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश का समर्थन किया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सिविल सेवा पेंशन नियम 1972 (Civil Service Pension Rules 1972) के तहत दत्तक ग्रहण (Adoption) केवल सरकारी कर्मचारी की नौकरी के कार्यकाल तक ही मान्य है। कर्मचारी की मृत्यु के बाद गोद ली गई संतान को इस नियम के अंतर्गत पेंशन का अधिकार नहीं दिया जा सकता।

केस की पृष्ठभूमि: क्या है पूरा मामला?

इस केस की शुरुआत नागपुर से हुई, जहां श्रीधर चिमुरकर नामक एक सरकारी कर्मचारी राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन में अधीक्षक के पद पर कार्यरत थे। 1993 में उन्होंने सेवानिवृत्ति ली और 1994 में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी पत्नी माया मोतघरे ने 1996 में श्री राम श्रीधर नामक एक बच्चे को गोद लिया। कुछ समय बाद माया ने पुनः विवाह कर लिया और नई दिल्ली चली गईं। गोद लिए हुए बच्चे ने पारिवारिक पेंशन का दावा किया, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने सिरे से खारिज कर दिया।

हिंदू दत्तक ग्रहण अधिनियम का जिक्र

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम 1956 (Hindu Adoption and Maintenance Act 1956) का हवाला दिया। इस अधिनियम की धारा 8 और 12 के तहत एक महिला को अपने पति की सहमति के बिना गोद लेने का अधिकार नहीं है। हालांकि, विधवा और तलाकशुदा महिलाओं को यह अधिकार दिया गया है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि दत्तक ग्रहण शब्द का दायरा सीमित होना चाहिए और इसे पेंशन के दावे के लिए गलत तरीके से नहीं बढ़ाया जाना चाहिए।

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सुप्रीम कोर्ट का फैसला: महत्वपूर्ण तथ्य

  • सिविल सेवा पेंशन नियम 1972 के भाग 54 (14B) के तहत केवल नौकरी के कार्यकाल के दौरान गोद ली गई संतान ही पारिवारिक पेंशन की हकदार हो सकती है।
  • सरकारी कर्मचारी की मृत्यु के बाद गोद ली गई संतान को पेंशन का अधिकार नहीं होगा।
  • अदालत ने कहा कि पेंशन नियमों की व्याख्या करते समय “गोद लिया हुआ बच्चा” शब्द केवल नौकरी के दौरान तक सीमित होना चाहिए।

फैसले का प्रभाव

यह फैसला पेंशन के दावों में स्पष्टता लाता है और यह सुनिश्चित करता है कि नियमों की सटीक व्याख्या की जाए। इससे सरकारी कर्मचारियों और उनके परिवारों को पेंशन के अधिकारों के दायरे को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी।

पेंशन नियमों पर कोर्ट की व्याख्या

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकारी कर्मचारी के जीवनकाल में गोद लेने की प्रक्रिया ही पेंशन के लिए मान्य होगी। यदि कर्मचारी की मृत्यु के बाद उनके पति या पत्नी ने किसी को गोद लिया, तो यह दत्तक संतान पेंशन के अधिकार से वंचित रहेगी।

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