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सुप्रीम कोर्ट का फैसला, डेढ़ हजार दुकानों के अवैध निर्माण पर बुलडोजर चलाने का दिया आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने मेरठ के सेंट्रल मार्केट में अवैध निर्माणों को गिराने का आदेश दिया है। आवासीय भूखंडों पर व्यावसायिक निर्माण अवैध घोषित किए गए हैं। अदालत ने अधिकारियों पर भी कार्रवाई का आदेश दिया है। यह फैसला 1,500 से अधिक दुकानों को प्रभावित करेगा और शहरी नियोजन में सुधार के लिए मील का पत्थर साबित होगा।

By PMS News
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सुप्रीम कोर्ट का फैसला, डेढ़ हजार दुकानों के अवैध निर्माण पर बुलडोजर चलाने का दिया आदेश
सुप्रीम कोर्ट का फैसला

मेरठ (Uttar Pradesh) की सेंट्रल मार्केट में अवैध निर्माण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा और कड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने शास्त्री नगर क्षेत्र के आवासीय भूखंडों पर भू उपयोग परिवर्तन कर बनाए गए व्यावसायिक भवनों को अवैध घोषित कर ध्वस्त करने का आदेश दिया है। इस फैसले का प्रभाव 1,500 से अधिक दुकानों और व्यावसायिक परिसरों पर पड़ेगा। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने इस मामले पर विचार करते हुए इसे कानून के खिलाफ और शहरी नियोजन की गलत दिशा में उठाया गया कदम बताया।

अदालत ने क्यों दिया अवैध निर्माण ध्वस्त करने का आदेश?

शास्त्री नगर विकास योजना के तहत आवासीय भूखंडों को व्यावसायिक उपयोग में बदलने का काम किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इसे अवैध करार देते हुए तीन महीने के भीतर सभी परिसरों को खाली करने का निर्देश दिया है। इसके बाद, आवास एवं विकास परिषद को दो सप्ताह के अंदर इन अवैध निर्माणों को गिराने का काम करना होगा।

यह आदेश इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसने न केवल अवैध निर्माणों को उजागर किया, बल्कि इसमें शामिल सरकारी अधिकारियों पर कार्रवाई का रास्ता भी साफ किया है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर किसी अधिकारी ने आदेश के अनुपालन में कोताही बरती, तो उनके खिलाफ अदालत की अवमानना के तहत कार्यवाही की जाएगी।

इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला बरकरार

इस फैसले ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2014 के आदेश को भी सही ठहराया है। हाई कोर्ट ने मेरठ के भूखंड संख्या 661/6 पर बने निर्माणों को अवैध घोषित कर उन्हें गिराने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश की पुष्टि करते हुए कहा कि कानून और नगर नियोजन नियमों का उल्लंघन किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

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क्या है सेंट्रल मार्केट विवाद?

सेंट्रल मार्केट का विवाद 661/6 भूखंड पर बने व्यावसायिक परिसरों से जुड़ा है। 1992-1995 के बीच इन भूखंडों पर अवैध रूप से दुकानें बनाई गईं और बेची गईं। दिलचस्प बात यह है कि आवास विकास परिषद के रिकॉर्ड में यह भूखंड आज भी वीर सिंह नामक व्यक्ति के नाम दर्ज है। इस गड़बड़ी के बावजूद, व्यावसायिक उपयोग की इमारतों को कानूनी स्वीकृति नहीं दी जा सकी।

सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद को हल करने के लिए परिषद से 499 भूखंडों की स्टेटस रिपोर्ट मांगी थी। परिषद की रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया कि 1,478 भूखंडों का आवासीय से व्यावसायिक उपयोग में परिवर्तन किया गया है।

लापरवाही के दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई

सुप्रीम कोर्ट ने आवास एवं विकास परिषद के उन अधिकारियों पर भी कार्रवाई का आदेश दिया है, जिनके कार्यकाल में यह गड़बड़ी हुई। अदालत ने इन अधिकारियों पर विभागीय और आपराधिक कार्रवाई करने की बात कही है।

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