सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाल ही में जमीन विवाद (Land Dispute) से जुड़े एक अहम मामले में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab and Haryana High Court) के फैसले को पलटते हुए हस्ताक्षरित कार्बन कॉपी (Signed Carbon Copy) को कोर्ट में वैध सबूत (Valid Evidence) के रूप में मान्यता दी है। इस ऐतिहासिक फैसले में शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) की धारा-62 (Section-62) के अंतर्गत हस्ताक्षरित कार्बन कॉपी को प्राथमिक साक्ष्य (Primary Evidence) का दर्जा दिया जाएगा।
हाईकोर्ट का पूर्व निर्णय और सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि हस्ताक्षरित कार्बन कॉपी को वास्तविक दस्तावेज (Original Document) के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसके चलते एक भूमि विवाद से संबंधित पक्ष को न्याय पाने में कठिनाई का सामना करना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस फैसले को खारिज करते हुए कहा कि यह धारा-62 के प्रावधानों के खिलाफ है।
शीर्ष अदालत की पीठ, जिसमें जस्टिस दीपक गुप्ता प्रमुख थे, ने कहा कि कार्बन कॉपी को वास्तविक दस्तावेज के समान महत्व देना न्यायिक प्रक्रिया का एक अहम हिस्सा है। अदालत ने माना कि जब दोनों पक्ष कार्बन कॉपी पर हस्ताक्षर करते हैं, तो उसकी प्रकृति भी वास्तविक दस्तावेज जैसी ही हो जाती है।
साक्ष्य कानून के तहत कार्बन कॉपी की वैधता
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा-62 यह निर्धारित करती है कि किसी भी हस्ताक्षरित दस्तावेज की कार्बन कॉपी, यदि इसे वैधानिक प्रक्रिया के तहत तैयार किया गया हो, तो उसे वास्तविक साक्ष्य के तौर पर स्वीकार किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इस कानूनी धारणा को सुदृढ़ किया और कहा कि दस्तावेजों की सत्यता और उनकी प्रक्रिया को लेकर साक्ष्य अधिनियम में पर्याप्त प्रावधान पहले से मौजूद हैं।
परीक्षण के लिए हाईकोर्ट को लौटाया गया
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए मामले को दोबारा परीक्षण के लिए भेज दिया। शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि परीक्षण के दौरान हस्ताक्षरित कार्बन कॉपी को भी सबूत के रूप में शामिल किया जाए। इस निर्देश ने कानूनी प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने की जरूरत पर बल दिया।