
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के किसानों और भूमि मालिकों को बड़ी राहत देते हुए जमीन के मुआवजे को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेष अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए कहा है कि यदि सरकार की ओर से अधिग्रहित जमीन के लिए मुआवजे के भुगतान में लंबे समय तक देरी होती है तो भूमि मालिक वर्तमान बाजार मूल्य के बराबर मुआवजा पाने का हकदार है। यह फैसला कर्नाटक इंडस्ट्रियल एरिया डेवलपमेंट बोर्ड (KIADB) के खिलाफ दायर एक याचिका पर दिया गया है।
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भूमि अधिग्रहण का मामला
मामला बेंगलुरु-मैसूर इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर परियोजना से जुड़ा है, जिसके लिए केआईएबीडी ने 2003 में हजारों एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया था। इस अधिग्रहण के बाद भी भूमि मालिकों को मुआवजे के लिए अवार्ड पारित नहीं किया गया था। अधिसूचना जारी होने के बावजूद भूमि मालिकों को मुआवजा नहीं मिला, जिसके बाद वे अदालत का रुख करने पर मजबूर हो गए।
मुआवजे में देरी पर सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
कोर्ट ने इस मामले में साफ किया कि यदि सरकार अधिग्रहित भूमि का मुआवजा समय पर नहीं देती है, तो भूमि मालिकों को वर्तमान बाजार मूल्य के आधार पर मुआवजा दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 142 के तहत मिले विशेष अधिकारों का उपयोग कर न्याय देने का यह एक उपयुक्त उदाहरण है।
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कर्नाटक हाईकोर्ट का आदेश
इस मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने पहले ही आदेश दे दिया था कि भूमि अधिग्रहण अधिकारी 22 अप्रैल 2019 के आधार पर भूमि का बाजार मूल्य निर्धारित करें। इसके बावजूद, 2003 के आधार पर मुआवजा देने की घोषणा करने पर केआईएबीडी को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती का सामना करना पड़ा।
आगे की राह
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल कर्नाटक बल्कि पूरे देश के भूमि मालिकों के लिए एक नजीर साबित हो सकता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि भूमि अधिग्रहण के मामलों में सरकारों को समय पर मुआवजा देना अनिवार्य है, अन्यथा उन्हें मौजूदा बाजार मूल्य के हिसाब से मुआवजा देना पड़ेगा।