डीएनडी फ्लाईवे, जो नोएडा और दिल्ली को जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण मार्ग है, अब पूरी तरह से टोल-फ्री हो गया है। 20 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए नोएडा टोल ब्रिज कंपनी को टोल वसूलने से रोक दिया। यह फ्लाईवे, जिसे आईएलएफएस (ILFS) समर्थित नोएडा टोल ब्रिज कंपनी प्रबंधित करती है, लंबे समय से टोल वसूली के विवाद का केंद्र रहा है।
टोल वसूली क्यों हुई समाप्त?
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नोएडा टोल ब्रिज कंपनी ने परियोजना की लागत, रखरखाव और लाभ पहले ही वसूल लिया है। अदालत ने कहा कि टोल वसूलने का अब कोई औचित्य नहीं है। परियोजना लागत की गणना के फॉर्मूले की आलोचना करते हुए कोर्ट ने इसे संविधान के खिलाफ बताया। यह फैसला टोल उपयोगकर्ताओं के लिए राहत भरा है, क्योंकि अब इस मार्ग का उपयोग बिना किसी अतिरिक्त शुल्क के किया जा सकेगा।
प्रोजेक्ट लागत और हाई कोर्ट का फैसला
2016 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने नोएडा टोल ब्रिज कंपनी को टोल वसूली से रोक दिया था। कोर्ट ने पाया कि कंपनी ने निवेश की गई राशि, ब्याज और लागत पहले ही वसूल ली है। इसके बावजूद कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
टोल गणना का तरीका
भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों पर टोल दरों की गणना विभिन्न नियमों के अनुसार होती है। सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित परियोजनाओं के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग शुल्क नियम, 2008 लागू होते हैं। टोल दर को इस प्रकार निर्धारित किया जाता है:
टोल रेट = खंड की लंबाई (किमी) × प्रति किमी आधार दर (रु./किमी)
इसके अलावा, बीओटी (BOT) और एचएएम (HAM) परियोजनाओं में शुल्क के लिए अलग-अलग प्रावधान होते हैं।
नोएडा टोल ब्रिज कंपनी के शेयरों पर असर
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सीधा असर कंपनी के शेयरों पर पड़ा है। एनएसई पर कंपनी के शेयर 5% गिरकर ₹18.52 पर आ गए। यह दिखाता है कि टोल वसूली समाप्त होने से कंपनी की आय पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।