नई दिल्ली: चेक बाउंस के मामले में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, जिसमें हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया गया है। इस फैसले के बाद चेक बाउंस (Cheque Bounce) के कई लंबित मामलों पर न्यायिक प्रणाली में तेजी आ सकती है। चेक बाउंस से जुड़े मामलों को कानून के तहत निपटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने नई दिशा प्रदान की है।
चेक बाउंस एक गंभीर अपराध है
चेक एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जिसके माध्यम से बड़ी रकम का लेनदेन किया जाता है। लेकिन अगर कोई चेक बाउंस हो जाता है, तो इसे भारत में एक अपराध माना जाता है। इसके लिए सजा का प्रावधान है, और कानून की नजर में यह एक गंभीर अपराध है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इस मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा कि चेक बाउंस से जुड़े लंबित मामलों पर न्यायालय को समझौता योग्य अपराधों के निपटारे को प्राथमिकता देनी चाहिए, यदि दोनों पक्ष सहमत हों।
सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ, जिसमें जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस ए. अमानुल्लाह शामिल थे, ने चेक बाउंस मामले में पी. कुमार सामी नामक व्यक्ति की सजा को रद्द कर दिया। इस मामले में दोनों पक्षों ने समझौता कर लिया था और शिकायतकर्ता को ₹5.25 लाख का भुगतान कर दिया गया था। कोर्ट ने इस समझौते को ध्यान में रखते हुए हाई कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने चेक बाउंस के मामलों पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि बड़ी संख्या में ऐसे मामले न्यायिक प्रणाली में लंबित हैं, जो एक गंभीर समस्या है। अदालत ने कहा कि दंडात्मक उपायों की बजाय Compensatory उपायों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चेक बाउंस केवल एक नियामक अपराध है, जिसका उद्देश्य आर्थिक नियमों की विश्वसनीयता बनाए रखना है।
हाई कोर्ट का फैसला निरस्त
इस मामले में, साल 2006 में पी. कुमार सामी ने प्रतिवादी सुब्रमण्यम को ₹5.25 लाख का चेक जारी किया था, जो अपर्याप्त धनराशि के कारण बाउंस हो गया। इसके बाद निचली अदालत ने आरोपी को दोषी ठहराया और एक वर्ष की कारावास की सजा सुनाई। हाई कोर्ट ने इस फैसले को बहाल किया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में निचली अदालत और हाई कोर्ट दोनों के फैसलों को निरस्त कर दिया।