
सरकारी कर्मचारियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का एक अहम फैसला सामने आया है, जिसमें अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि पश्चिम बंगाल सरकार को अपने कर्मचारियों को 25% महंगाई भत्ता-Dearness Allowance (DA) देना ही होगा। यह फैसला उन लाखों कर्मचारियों के लिए बड़ी राहत है, जो लंबे समय से अपने DA में समानता की मांग कर रहे थे। कोर्ट के इस आदेश ने न सिर्फ कर्मचारियों को सशक्त किया है, बल्कि राज्य सरकारों को भी उनके कर्तव्यों की याद दिलाई है।
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DA में भारी अंतर बना विवाद की वजह
DA का मुद्दा पिछले कुछ वर्षों से विवाद का विषय बना हुआ था, खासकर पश्चिम बंगाल के कर्मचारियों के लिए। राज्य के कर्मचारियों को केंद्र सरकार के कर्मचारियों की तुलना में बहुत कम DA मिल रहा था। जहां केंद्र सरकार के कर्मचारी 55% तक का महंगाई भत्ता पा रहे हैं, वहीं बंगाल सरकार अपने कर्मचारियों को केवल 18% DA देती आ रही थी। इस अंतर ने कर्मचारियों में नाराज़गी पैदा कर दी थी और उन्होंने इसे अदालत में चुनौती दी थी।
कलकत्ता हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक का सफ
इस संदर्भ में मई 2022 में कलकत्ता हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को केंद्र के समकक्ष DA देने का आदेश दिया था। हालांकि राज्य सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन अब वहां से भी उसे झटका मिला है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि राज्य सरकार को तीन महीने के भीतर अपने कर्मचारियों को 25% DA देना होगा।
वित्तीय बोझ और अदालत का लचीला रुख
सुनवाई के दौरान अदालत ने यह भी सुझाव दिया कि राज्य सरकार चाहे तो DA की शेष राशि किस्तों में भी दे सकती है, लेकिन इसे टाला नहीं जा सकता। राज्य सरकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने यह तर्क दिया कि एकमुश्त भुगतान करना वित्तीय रूप से संभव नहीं होगा। इसके जवाब में कोर्ट ने 25% की सीमा तय कर दी, जिसे लागू करना अनिवार्य होगा।
राजनीतिक प्रतिक्रिया और कर्मचारियों की प्रतिक्रिया
राजनीतिक तौर पर भी यह फैसला खासा महत्वपूर्ण है। भाजपा नेता अमित मालवीय और सुवेंदु अधिकारी जैसे नेताओं ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि यह सरकारी कर्मचारियों की जीत है और राज्य सरकार की नाकामी का प्रमाण भी। वहीं राज्य सरकार के लिए यह फैसला निश्चित रूप से दबाव बढ़ाने वाला साबित होगा, खासकर तब जब उसे अपने राजस्व संसाधनों के पुनर्गठन की भी आवश्यकता है।
DA का महत्व और कर्मचारियों के जीवन पर प्रभाव
महंगाई भत्ता-DA केवल वेतन का हिस्सा नहीं होता, बल्कि यह मुद्रास्फीति से बचाने वाला वह सुरक्षा कवच होता है जो हर कर्मचारी के जीवनस्तर को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है। ऐसे में 25% DA का यह फैसला कर्मचारियों के लिए एक बड़ी राहत के रूप में देखा जा रहा है।
राष्ट्रीय स्तर पर असर डाल सकता है फैसला
यह फैसला केवल पश्चिम बंगाल तक सीमित नहीं रहेगा। अन्य राज्यों में भी यदि समान स्थिति उत्पन्न होती है तो यह निर्णय नज़ीर बन सकता है। यह संकेत देता है कि राज्य सरकारें चाहे कितनी भी वित्तीय कठिनाई में हों, कर्मचारियों के मौलिक वित्तीय अधिकारों की अनदेखी नहीं की जा सकती।
सरकार पर बढ़ेगा वित्तीय दबाव
इस निर्णय से पश्चिम बंगाल सरकार पर करोड़ों रुपये का अतिरिक्त बोझ आएगा। फिर भी कोर्ट का मानना है कि यह बोझ कर्मचारियों की भलाई और उनके जीवनस्तर को बनाए रखने के लिए जरूरी है। कर्मचारियों को भी यह समझना होगा कि यह केवल अदालत की कृपा नहीं बल्कि उनके अधिकारों की कानूनी पुष्टि है।
संवैधानिक जिम्मेदारी की पुष्टि
DA को लेकर यह फैसला एक संवैधानिक दायित्व की पुनर्पुष्टि भी है। यह स्पष्ट करता है कि चाहे कोई भी सरकार हो, वह अपने कर्मचारियों को केंद्र के समकक्ष सुविधाएं देने से बच नहीं सकती। यह फैसला न्यायपालिका के उस पक्ष को उजागर करता है जो कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
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