देशभर में लंबित केसों के बीच सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का एक अहम फैसला चर्चा में है, जो बेटियों के संपत्ति अधिकार (Daughters Property Rights) को लेकर आया है। यह फैसला खास परिस्थितियों में बेटियों को पिता की संपत्ति से वंचित करता है। आइए, इस मामले की पूरी जानकारी समझते हैं।
क्या है मामला?
सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसा मामला पहुंचा था, जिसमें हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत बेटी को पिता की संपत्ति में अधिकार नहीं दिया गया। यह केस तलाक से जुड़ा हुआ था और पहले हाईकोर्ट (High Court) में सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा।
मामले में, याचिकाकर्ता पति ने जिला अदालत में तलाक के लिए अर्जी दी थी, जिसमें फैसला उसके पक्ष में गया। हालांकि, पत्नी ने हाईकोर्ट में अपील की, जहां तलाक की अर्जी खारिज कर दी गई। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां अब यह स्पष्ट कर दिया गया कि कुछ खास परिस्थितियों में बेटियों को पिता की संपत्ति का अधिकार नहीं मिलेगा।
सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ ने सुनवाई के दौरान महत्वपूर्ण टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि अगर बेटी पिता से संबंध नहीं रखना चाहती है और उसकी उम्र 20 वर्ष के आसपास है, तो वह शिक्षा या शादी के लिए पिता की संपत्ति का दावा नहीं कर सकती।
इस फैसले में कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि माता-पिता के बीच तलाक होने और बेटी के पिता से संबंध खत्म करने की स्थिति में बेटी का अधिकार सीमित हो सकता है। यह फैसला पिता की संपत्ति के उत्तराधिकार को लेकर एक नई दिशा प्रदान करता है।
तलाक के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला
मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया कि याचिकाकर्ता पिता अपनी बेटी और पत्नी का शिक्षा व गुजारा भत्ता पहले ही दे रहा है। कोर्ट ने यह पाया कि पत्नी अपने भाई के साथ रह रही है और पिता से संबंध खत्म कर चुकी बेटी का पिता की संपत्ति में हिस्सा मांगने का कोई आधार नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश दिया कि अगर याचिकाकर्ता पति चाहता है तो वह अपनी पत्नी को सभी दावों के निपटारे के रूप में 10 लाख रुपये एकमुश्त दे सकता है। यह राशि बेटी की देखभाल के लिए मां के पास रहेगी।
फैसले के पीछे का तर्क
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम बेटियों को पिता की संपत्ति में अधिकार देता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हर स्थिति में यह अधिकार लागू होगा। अगर बेटी पिता से संबंध नहीं रखना चाहती है और अपने जीवन में उनकी भूमिका नहीं मानती, तो संपत्ति पर उसका दावा सही नहीं ठहराया जा सकता।
पुराने फैसलों की कड़ी
यह मामला जिला अदालत से शुरू हुआ था, जहां पति के पक्ष में फैसला हुआ। हाईकोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अब इसे स्पष्ट रूप से निपटाते हुए याचिकाकर्ता को विकल्प दिया है कि वह पत्नी और बेटी के खर्चे के लिए एकमुश्त राशि दे सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला क्यों है अहम?
यह फैसला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह तलाक और संपत्ति अधिकार के जटिल मुद्दों पर रोशनी डालता है। यह पहली बार है जब सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के संवेदनशील मामले में इतनी स्पष्टता से निर्देश दिए हैं। इस फैसले का प्रभाव अन्य समान मामलों में भी देखने को मिल सकता है।