
भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि उचित मुआवजा (Compensation) दिए बिना किसी भी राज्य को नागरिकों की भूमि का अधिग्रहण (Land Acquisition) करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। यह फैसला हिमाचल प्रदेश सरकार (Himachal Pradesh Government) और अन्य की ओर से दायर याचिकाओं को खारिज करते हुए दिया गया, जिसमें राज्य उच्च न्यायालय (High Court) के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें भूमि मालिकों को मुआवजा देने का निर्देश दिया गया था।
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संपत्ति का अधिकार: संवैधानिक अधिकार, मौलिक नहीं
न्यायमूर्ति बीआर गवई (Justice BR Gavai) और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन (Justice KV Viswanathan) की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि संपत्ति का अधिकार (Right to Property) अब मौलिक अधिकार (Fundamental Right) नहीं है, लेकिन यह अभी भी एक संवैधानिक अधिकार (Constitutional Right) है। इसका मतलब है कि राज्य उचित मुआवजा दिए बिना किसी भी नागरिक की भूमि पर कब्जा नहीं कर सकता।
मुआवजा न मिलने पर भूमि मालिकों की शिकायतें
पीठ ने कहा कि उसके सामने ऐसे कई मामले आए हैं, जिनमें भूमि मालिकों ने शिकायत की है कि उनकी भूमि का अधिग्रहण सड़क निर्माण (Road Construction) जैसे कार्यों के लिए किया गया, लेकिन उन्हें उचित मुआवजा नहीं मिला। इस प्रकार की याचिकाएं अक्सर राज्य सरकार द्वारा उच्च न्यायालय के आदेशों को चुनौती देने के रूप में सामने आती हैं।
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राज्य की याचिकाएं खारिज
इस फैसले में, सर्वोच्च न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश सरकार और अन्य की ओर से दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिसमें उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जो भूमि मालिकों को मुआवजा देने से संबंधित था। पीठ ने स्पष्ट किया कि इस प्रकार के मामलों में राज्य की ओर से दायर याचिकाओं को भारी जुर्माने (Penalty) के साथ खारिज करना उचित होता है, लेकिन इस बार ऐसा करने से बचा गया है।
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संवैधानिक अधिकारों की रक्षा
पीठ ने कहा कि संपत्ति का अधिकार भले ही अब मौलिक अधिकार न हो, लेकिन यह एक संवैधानिक अधिकार है और इसे सुरक्षित रखना राज्य की जिम्मेदारी है। इस निर्णय के माध्यम से न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि किसी भी नागरिक की भूमि का अधिग्रहण उचित मुआवजा दिए बिना नहीं किया जा सकता।