हाल ही में, दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि पिता द्वारा अर्जित संपत्ति पर बेटे का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। यह निर्णय हिंदू परिवार कानून की जटिलताओं और मिताक्षरा कानून की व्याख्या के अंतर्गत आया है। अदालत ने कहा कि पिता को अपनी स्व-अर्जित संपत्ति पर पूरा अधिकार है, और वह इसे अपनी मर्जी से किसी को भी दे सकते हैं।
इस फैसले ने परिवारों में संपत्ति के बंटवारे और अधिकारों को लेकर चल रही बहस को नई दिशा दी है। इसमें स्व-अर्जित संपत्ति और पैतृक संपत्ति के बीच के अंतर को समझना बेहद जरूरी है।
स्व-अर्जित संपत्ति बनाम पैतृक संपत्ति
स्व-अर्जित संपत्ति:
पिता की वह संपत्ति जो उन्होंने अपनी मेहनत से अर्जित की हो, स्व-अर्जित संपत्ति कहलाती है। इस पर पिता का पूरा अधिकार होता है, और वह इसे वसीयत के जरिए किसी को भी दे सकते हैं। इस प्रकार की संपत्ति में बेटे का कोई जन्मसिद्ध अधिकार नहीं होता।
पैतृक संपत्ति:
पैतृक संपत्ति वह होती है, जो किसी पुरुष को उसके पिता, दादा, या परदादा से उत्तराधिकार के रूप में प्राप्त हो। इस संपत्ति पर परिवार के सभी सदस्यों का अधिकार होता है, और इसे व्यक्तिगत संपत्ति में परिवर्तित नहीं किया जा सकता।
हाईकोर्ट का फैसला और मिताक्षरा कानून
मिताक्षरा कानून के तहत, पैतृक संपत्ति में बेटे का जन्मसिद्ध अधिकार होता है। लेकिन स्व-अर्जित संपत्ति के मामले में, यह अधिकार नहीं है। हाईकोर्ट ने इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के सीए अरुणाचल मुदलियार बनाम सीए मुरुगनाथ मुदलियार मामले का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया कि पिता की स्व-अर्जित संपत्ति उनके विवेक पर निर्भर करती है।
संपत्ति और उत्तराधिकार का विश्लेषण
भारत में हिंदू परिवार कानून के तहत संयुक्त परिवार की संपत्ति और व्यक्तिगत संपत्ति को अलग-अलग मान्यता दी गई है।
- संयुक्त परिवार की संपत्ति: इसे विशाल जलाशय के रूप में देखा जा सकता है, जिसमें परिवार के सभी सदस्यों का समान अधिकार होता है।
- स्व-अर्जित संपत्ति: इसके अधिकार केवल अर्जित करने वाले के पास होते हैं।
उदाहरण, नाना से मिली संपत्ति
प्राचीन फैसलों में भी संपत्ति के अधिकारों को परिभाषित किया गया है। जैसे, प्रीवी काउंसिल के एक मामले में नाना से मिली संपत्ति को पैतृक संपत्ति नहीं माना गया, क्योंकि मामा या नाना पूर्वज की श्रेणी में नहीं आते।