
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने सरकारी कर्मचारियों को लेकर एक बड़ा फैसला लिया है, जो राज्य के प्रशासनिक ढांचे में महत्वपूर्ण बदलाव लाने वाला है। अब असम में सरकारी कर्मचारी अगर अपनी पहली पत्नी के जीवित रहते हुए दूसरी शादी करना चाहते हैं, तो उन्हें इसके लिए सरकार से अनुमति लेनी होगी। यह फैसला न केवल कर्मचारियों के व्यक्तिगत जीवन पर असर डालेगा, बल्कि प्रशासनिक अनुशासन को भी मजबूत करेगा।
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सरकार का यह फैसला सभी धर्मों पर लागू होगा, चाहे वह हिंदू, मुस्लिम, ईसाई या किसी अन्य धर्म से संबंधित हो। असम सरकार का यह कदम ‘पर्सनल लॉ’ से परे जाकर प्रशासनिक नियंत्रण को सख्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा का कहना है कि यह निर्णय सरकारी सेवा में अनुशासन और नैतिकता बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
क्यों लिया गया यह फैसला?
मुख्यमंत्री सरमा ने इस फैसले के पीछे का कारण बताते हुए कहा कि कई बार सरकारी कर्मचारी बिना उचित अनुमति के दूसरी शादी कर लेते हैं, जिससे न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन में समस्याएँ पैदा होती हैं, बल्कि इसका प्रभाव उनके कार्य प्रदर्शन पर भी पड़ता है। यह निर्णय सुनिश्चित करेगा कि सरकारी कर्मचारियों के पारिवारिक और व्यावसायिक जीवन में संतुलन बना रहे।
पर्सनल लॉ बनाम सरकारी नियम
हालांकि भारत में विवाह से जुड़े कानून अलग-अलग धर्मों के लिए अलग हो सकते हैं, जैसे हिंदू मैरिज एक्ट, मुस्लिम पर्सनल लॉ, और क्रिश्चियन मैरिज एक्ट, लेकिन सरकारी नियम इनसे अलग हो सकते हैं। असम सरकार का यह नया नियम इन सभी धर्मों के कर्मचारियों पर समान रूप से लागू होगा। इसका मतलब है कि चाहे कर्मचारी किसी भी धर्म से हो, उसे दूसरी शादी से पहले राज्य सरकार से अनुमति लेनी होगी।
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क्या होगा अनुमति न लेने पर?
अगर कोई सरकारी कर्मचारी बिना अनुमति के दूसरी शादी करता है, तो उसे न केवल प्रशासनिक कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा, बल्कि उसकी सेवा भी प्रभावित हो सकती है। इस नियम का उल्लंघन करने वाले कर्मचारियों के खिलाफ विभागीय अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी, जिसमें निलंबन से लेकर सेवा समाप्ति तक के कदम शामिल हो सकते हैं।
महिला कर्मचारियों के लिए भी समान नियम
यह नियम केवल पुरुष कर्मचारियों पर ही लागू नहीं होगा, बल्कि महिला सरकारी कर्मचारियों के लिए भी समान रूप से लागू होगा। इसका उद्देश्य कर्मचारियों के व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में पारदर्शिता और अनुशासन को बढ़ावा देना है।
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सामाजिक और कानूनी प्रभाव
इस फैसले से सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण से कई महत्वपूर्ण प्रश्न खड़े हो सकते हैं। क्या यह कदम संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के अंतर्गत धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है? यह भी देखने वाली बात होगी कि इस फैसले का व्यावहारिक प्रभाव सरकारी कर्मचारियों और उनके परिवारों पर कैसा पड़ता है।