सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने हाल ही में एक प्रस्ताव पेश किया है, जिसमें जजों के परिवार से किसी को हाई कोर्ट जज नियुक्ति पर अस्थायी रोक लगाने की बात कही गई है। इसका उद्देश्य है कि पहली पीढ़ी के वकीलों और न्यायिक अधिकारियों को संवैधानिक अदालतों में अवसर मिले। यह प्रस्ताव न्यायिक प्रणाली में पारदर्शिता और निष्पक्षता को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
वकीलों से संवाद और निष्पक्ष मूल्यांकन
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने हाई कोर्ट कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित वकीलों और न्यायिक अधिकारियों से व्यक्तिगत रूप से मिलने का फैसला किया है। इसका मकसद उनकी योग्यता, क्षमता और उपयुक्तता का मूल्यांकन करना है। इस प्रक्रिया से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि चयनित उम्मीदवार न्यायपालिका की गरिमा और पारदर्शिता को बनाए रख सकें।
1/2If true, both proposals under SC collegium consideration, seemingly radical, are good &shd be implemented sooner rather than later. I wrote decades ago tht collegium judges shd disguise themselves &sit in courts of those judges being consd for elevation or lawyers in action b4…
— Abhishek Singhvi (@DrAMSinghvi) December 30, 2024
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी का समर्थन
कांग्रेस नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने इस प्रस्ताव का समर्थन करते हुए इसे क्रांतिकारी बताया। उन्होंने कहा कि इन प्रस्तावों को शीघ्र लागू किया जाना चाहिए ताकि न्यायपालिका में सुधार की दिशा में ठोस कदम उठाए जा सकें। सिंघवी ने यह भी जोड़ा कि यह कदम पहली पीढ़ी के वकीलों के लिए समान अवसर प्रदान करने में सहायक होगा, जो पारिवारिक वंश से वंचित होते हैं।
भेष बदलकर न्यायिक प्रदर्शन का आकलन
सिंघवी ने यह विचार भी प्रस्तुत किया कि कॉलेजियम के जजों को अपने उम्मीदवारों के वास्तविक न्यायिक प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के लिए भेष बदलकर अदालतों में जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह तरीका आदर्श रूप से कागजी मूल्यांकन और वास्तविक प्रदर्शन के बीच के अंतर को खत्म कर सकता है। हालांकि, उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि यह व्यावहारिक रूप से लागू करना कठिन हो सकता है।
न्यायिक नियुक्तियों में पारिवारिक वंश का प्रभाव
सिंघवी ने पारिवारिक वंश, चाचा जज और अन्य प्रथाओं पर भी टिप्पणी की, जो न्यायपालिका की निष्पक्षता को प्रभावित करती हैं। उन्होंने कहा कि यह प्रथाएं न केवल अन्य योग्य उम्मीदवारों का मनोबल गिराती हैं बल्कि संस्थान की विश्वसनीयता को भी कमजोर करती हैं।
सुधारों की चुनौतियां और भविष्य की दिशा
सिंघवी के अनुसार, न्यायिक नियुक्तियों की प्रणाली को सुधारना आसान नहीं है। हालांकि, यह प्रस्ताव न्यायपालिका में सुधार की दिशा में एक सकारात्मक शुरुआत है। उन्होंने उम्मीद जताई कि ये कदम न्यायपालिका की निष्पक्षता और पारदर्शिता को बढ़ावा देंगे।
हाईकोर्ट में वांशिक नियुक्ति , नियुक्त जज के रिटायर होने के 10 साल बाद ही नियुक्ति हो, ओर नियुक्त जज कोलेजियम में न हो।