भारत में संपत्ति विवाद सबसे अधिक विवादित मामलों में से एक हैं। ज्यादातर मामले तब उठते हैं जब संपत्ति का सही तरीके से बंटवारा नहीं हो पाता या वसीयत का अभाव होता है। इन परिस्थितियों में, कोर्ट का सहारा लेना आम हो जाता है। बंटवारे की प्रक्रिया को समझना और इसे सही तरीके से अंजाम देना बेहद महत्वपूर्ण है, जिससे भविष्य के विवादों से बचा जा सके।
लोकल 18 की ‘बंटवारा सीरीज’ के अनुसार, संपत्ति के बंटवारे की प्रक्रिया को समझने के लिए कुछ कानूनी पहलुओं और प्रक्रियाओं का पालन करना आवश्यक है।
एसडीएम कोर्ट में संपत्ति का बंटवारा कैसे करवाएं?
अगर संपत्ति का बंटवारा आपसी सहमति से नहीं हो पा रहा है, तो उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 116 के तहत एसडीएम (Sub Divisional Magistrate) कोर्ट में आवेदन किया जा सकता है।
बुंदेलखंड औद्योगिक विकास प्राधिकरण के ओएसडी डॉ. लालकृष्ण के अनुसार, एसडीएम कोर्ट में आवेदन करने के बाद अधिकारी मौके पर जाकर संपत्ति की स्थिति का निरीक्षण करते हैं। इस प्रक्रिया में सभी हिस्सेदारों की सहमति के आधार पर एक औपचारिक बंटवारा किया जाता है। बंटवारे के बाद, सभी पक्ष अपनी-अपनी संपत्ति पर मेड़बंदी कर सकते हैं। यह प्रक्रिया न केवल पारदर्शी है, बल्कि विवादों को कम करने में भी मदद करती है।
बंटवारे की प्रक्रिया कैसे हुई सरल?
डॉ. लालकृष्ण ने यह भी बताया कि तकनीकी सुधारों और रियल टाइम खतौनी (Real-Time Records) के माध्यम से बंटवारे की प्रक्रिया अब पहले से अधिक सरल और सुविधाजनक हो गई है। तहसील स्तर पर डिजिटल खतौनी में सभी हिस्सेदारों का नाम पहले से दर्ज होता है। यह न केवल प्रक्रिया को तेज करता है, बल्कि इसमें त्रुटियों की संभावना भी कम हो जाती है।
नई व्यवस्था के तहत लोग अपनी संपत्ति से जुड़े मामलों को तेजी से निपटा सकते हैं और अदालतों में लंबित मुकदमों की संख्या भी घटाई जा सकती है। यह सुधार नागरिकों के लिए बड़ी राहत साबित हो रहा है।