संपत्ति विवाद अक्सर परिवारों के बीच मतभेद और तनाव का कारण बनते हैं। विशेषकर जब बात पिता की संपत्ति के बंटवारे की हो, तो भाई-बहन के बीच अधिकारों को लेकर खींचतान आम हो जाती है। इसी संदर्भ में जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट का एक ऐतिहासिक फैसला सामने आया है, जिसमें बेटी के पिता की संपत्ति पर अधिकार को लेकर अहम दिशा-निर्देश दिए गए हैं।
बेटी का पिता की संपत्ति पर अधिकार
पिता की संपत्ति में बेटियों का अधिकार भारतीय समाज में लंबे समय से विवादित मुद्दा रहा है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में संशोधन के बाद बेटियों को पैतृक संपत्ति में बेटे के समान अधिकार मिला। हालांकि, कुछ स्थितियों में बेटियों का अधिकार सीमित हो जाता है, खासकर जब संपत्ति पैतृक न होकर पिता की कमाई से अर्जित हो। इस्लामिक कानून में, कुरान के अनुसार, बेटियों को पिता की संपत्ति में उत्तराधिकार मिलता है, लेकिन इसकी व्याख्या अक्सर सांस्कृतिक परंपराओं में उलझ जाती है।
44 साल पुराना मामला हुआ हल
जम्मू-कश्मीर के इस मामले में मुनव्वर नामक व्यक्ति की बेटी ने अपने पिता की संपत्ति में अधिकार का दावा करते हुए अदालत में याचिका दाखिल की। यह मामला इस्लामिक कानून के अंतर्गत आता था, जिसमें बेटियों को पारंपरिक रूप से संपत्ति से वंचित किया जाता रहा है। हाई कोर्ट ने कुरान की शिक्षाओं का हवाला देते हुए यह स्पष्ट किया कि महिला और पुरुष दोनों को पिता की संपत्ति में उत्तराधिकार मिलता है। कोर्ट ने बेटी के अधिकार को जायज ठहराते हुए 44 साल पुराने इस विवाद का समाधान किया।
किन परिस्थितियों में बेटी को मिलता है संपत्ति में अधिकार?
- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत: पैतृक संपत्ति पर बेटियों का पूरा अधिकार है। लेकिन अगर संपत्ति पिता की व्यक्तिगत कमाई से अर्जित हो, तो पिता इसे अपनी इच्छा से किसी को भी दे सकते हैं।
- मुस्लिम कानून के तहत: बेटियों को संपत्ति में अधिकार मिलता है, लेकिन यह हिस्सा बेटों की तुलना में छोटा होता है। कुरान में पुरुषों और महिलाओं के अधिकारों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है।
- वसीयत के मामले में: अगर पिता ने संपत्ति को वसीयत के माध्यम से किसी अन्य को दिया है, तो बेटियां इस पर दावा नहीं कर सकतीं।