पुरानी पेंशन योजना (OPS) की बहाली को लेकर सरकारी कर्मचारियों के संगठन लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं। यह योजना, जो 1 अप्रैल 2004 से समाप्त कर दी गई थी और नई पेंशन प्रणाली (NPS) के तहत बदल दी गई थी, कर्मचारियों के लिए एक भावनात्मक और वित्तीय सुरक्षा का प्रतीक मानी जाती है। पुरानी पेंशन योजना की वापसी से कर्मचारी वर्ग को मनचाही राहत मिलने की संभावना है।
पुरानी पेंशन योजना का इतिहास और बंद होने की वजह
1 अप्रैल 2004 से केंद्र और अधिकांश राज्य सरकारों ने नई पेंशन प्रणाली (NPS) लागू की, जिसके कारण पुरानी पेंशन योजना को बंद कर दिया गया। इसके बाद से सरकारी कर्मचारी संगठनों ने विभिन्न माध्यमों से पुरानी पेंशन की बहाली की मांग को उठाया है। यह मुद्दा न केवल आर्थिक सुरक्षा से जुड़ा है बल्कि कर्मचारी समुदाय की मनोवैज्ञानिक संतुष्टि के लिए भी महत्वपूर्ण है।
राज्य कर्मचारी संघ परिषद की भूमिका
राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष जे.एन. तिवारी ने कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य सरकारी अधिकारियों को ज्ञापन देकर पुरानी पेंशन योजना की बहाली का अनुरोध किया है। उनका तर्क है कि NPS कर्मचारियों के लिए पर्याप्त वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने में असमर्थ है। इसके अलावा, उन्होंने जोर देकर कहा कि पुरानी पेंशन योजना कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति के बाद जीवनयापन की गारंटी देती है।
तकनीकी चुनौतियां और उनके समाधान
हालांकि, पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने में कई तकनीकी बाधाएं हैं। उदाहरण के लिए:
- एनपीएस अंशदान की स्पष्टता की कमी: NPS में कर्मचारियों और सरकार का अंशदान एक महत्वपूर्ण पहलू है, जिसे OPS में बदलना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- पुरानी शर्तों का सीमित विकल्प: 2009 तक केंद्र सरकार ने कुछ कर्मचारियों को शर्तों का विकल्प दिया, लेकिन यह सभी के लिए उपलब्ध नहीं था।
इन समस्याओं को हल करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया है, जो संभावित समाधान प्रस्तुत कर सकती है।
उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र की पहल
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्र सरकार ने इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। संभावना है कि कर्मचारियों को NPS और OPS में से किसी एक योजना को चुनने का अधिकार दिया जा सकता है। यह कदम कर्मचारियों की स्वतंत्रता और संतोष को बढ़ावा दे सकता है।