
सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या मुसलमानों (Rohingya Muslims) की भारत में उपस्थिति को लेकर एक अहम टिप्पणी की है, जिसमें कहा गया कि भारत में सिर्फ भारतीय (Only Indians in India) ही रहेंगे। यह बयान वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंसाल्विस और प्रशांत भूषण द्वारा दायर याचिकाओं पर विचार करते हुए आया है। पीठ ने इस मामले की अगली विस्तृत सुनवाई की तारीख 31 जुलाई तय की है। याचिकाओं में रोहिंग्या शरणार्थियों को भारत में रहने की अनुमति देने की मांग की गई थी।
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हालांकि, भारत सरकार और कुछ राज्यों की ओर से यह स्पष्ट किया गया है कि रोहिंग्या समुदाय राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकते हैं और उन्हें देश से वापस भेजना जरूरी है। इस बीच संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी संस्था UNHCR ने कई रोहिंग्या नागरिकों को शरणार्थी का दर्जा (Refugee Status by UNHCR) दिया है, जिससे मामला और भी संवेदनशील बन गया है।
सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट रुख
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी “भारत में सिर्फ भारतीय रहेंगे” ने स्पष्ट कर दिया है कि सरकार की नीति अवैध प्रवासियों को देश से बाहर भेजने की ओर झुकी हुई है। यह रुख विशेष रूप से उन प्रवासियों पर लागू होता है जिन्हें भारत सरकार ने वैध नागरिक नहीं माना है, जिनमें अधिकांश रोहिंग्या मुसलमान शामिल हैं।
सुनवाई के दौरान अदालत ने यह भी संकेत दिया कि यह मामला केवल मानवाधिकारों या शरण देने का नहीं बल्कि देश की सुरक्षा और आंतरिक स्थिति से भी जुड़ा हुआ है। वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि जिन लोगों को UNHCR ने शरणार्थी माना है, उन्हें अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत सुरक्षा दी जानी चाहिए।
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केंद्र और राज्यों की भूमिका
भारत सरकार पहले ही विभिन्न राज्यों को निर्देश दे चुकी है कि वे रोहिंग्या मुसलमानों की पहचान कर उन्हें वापस म्यांमार भेजने की प्रक्रिया शुरू करें। इसके पीछे मुख्य तर्क यह है कि रोहिंग्या नागरिक बिना वैध दस्तावेजों के भारत में रह रहे हैं और कुछ मामलों में इनके आतंकवादी संगठनों से संपर्क होने की आशंका भी जताई गई है।
हाल ही में जम्मू, हैदराबाद और दिल्ली जैसे क्षेत्रों में रोहिंग्या बस्तियों की जांच के बाद कई लोगों को हिरासत में लिया गया और उनकी नागरिकता की पुष्टि की प्रक्रिया शुरू की गई।
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UNHCR की स्थिति और भारत का रवैया
संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी संस्था UNHCR ने भारत में मौजूद कुछ रोहिंग्या मुसलमानों को आधिकारिक रूप से शरणार्थी का दर्जा दिया है। यह दर्जा अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत उन्हें कुछ अधिकार प्रदान करता है, जैसे जबरन देश से बाहर न निकाला जाना। हालांकि भारत UN Refugee Convention 1951 का सदस्य नहीं है, जिससे उसे कानूनी बाध्यता नहीं है कि वह इन शरणार्थियों को स्थायी रूप से अपने देश में रहने दे।
भारत सरकार का तर्क है कि UNHCR की मान्यता सिर्फ अंतरराष्ट्रीय मान्यता तक सीमित है और भारत की आंतरिक सुरक्षा और नीति उसके अनुसार नहीं चलाई जा सकती।
मानवाधिकार और सुरक्षा के बीच टकराव
यह मामला मानवाधिकार (Human Rights) और राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security) के बीच संतुलन की चुनौती बन चुका है। जहां एक ओर अधिवक्ताओं का कहना है कि रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार में जीवन का खतरा है, वहीं दूसरी ओर सरकार का कहना है कि अवैध रूप से भारत में रहने वाले किसी भी व्यक्ति को अनुमति नहीं दी जा सकती।
इस विवाद ने एक बार फिर भारत में शरणार्थी नीति और आप्रवासन कानूनों को लेकर चर्चा को जन्म दिया है।
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आगामी सुनवाई और संभावनाएं
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि इस संवेदनशील मामले की विस्तृत सुनवाई 31 जुलाई को होगी। इस दौरान अदालत यह तय करेगी कि UNHCR की मान्यता कितनी वैध है और क्या भारत को अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत रोहिंग्या मुसलमानों को देश में रहने देना चाहिए।
संभव है कि यह फैसला भारत की भविष्य की शरणार्थी नीति और नागरिकता कानून (Citizenship Law) की दिशा तय करेगा।