भारतीय न्यायालयों ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि माता-पिता की स्व-अर्जित संपत्ति पर बेटे का उनके जीवित रहते कोई दावा नहीं हो सकता। यह फैसला दिल्ली हाई कोर्ट सहित कई उच्च न्यायालयों में दर्ज मामलों पर आधारित है, जिनमें बेटों ने अपने माता-पिता की संपत्ति पर अधिकार जताने का प्रयास किया था।
क्या है कोर्ट का तर्क?
हाई कोर्ट के अनुसार, अगर संपत्ति माता-पिता द्वारा स्वयं अर्जित की गई है, तो उस पर उनके जीवनकाल में किसी और का दावा मान्य नहीं होगा। कोर्ट का तर्क है कि स्व-अर्जित संपत्ति पर माता-पिता का पूरा अधिकार होता है, और उन्हें यह अधिकार है कि वे अपनी संपत्ति को अपनी मर्जी से किसी को भी दें या किसी को निकाल दें। यह नियम खासकर ऐसे मामलों में लागू होता है जहां बेटा या बहू माता-पिता पर दबाव डालते हैं या उनके घर पर कब्जा करना चाहते हैं।
कानूनी प्रावधान
कानून के अनुसार, अगर माता-पिता असहाय हैं और उन्हें अपने जीवनयापन के लिए आर्थिक सहायता की जरूरत है, तो उनके बच्चे उन पर गुजारा भत्ता देने का दायित्व रखते हैं। “मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन एक्ट, 2007” के तहत माता-पिता को अपने बच्चों से आर्थिक सहायता प्राप्त करने का अधिकार है, अगर वे अपने जीवनयापन में सक्षम नहीं हैं।
पैतृक संपत्ति पर क्या है नियम?
अगर संपत्ति पैतृक है, तो बच्चे उस पर हक जता सकते हैं, क्योंकि पैतृक संपत्ति पर उत्तराधिकार कानून लागू होता है। हालांकि, स्व-अर्जित संपत्ति पर यह नियम लागू नहीं होता, और माता-पिता स्वतंत्र होते हैं कि वे अपनी संपत्ति का उपयोग कैसे करना चाहते हैं।
फैसले का समाज पर प्रभाव
इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि माता-पिता की संपत्ति पर उनका ही अधिकार होता है, और बेटों को इस पर दावा करने का अधिकार नहीं है। यह कदम समाज में बुजुर्गों के अधिकारों की रक्षा करने और उन्हें सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अवसर देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है।