आपकी कितनी इनकम पर लगेगा टैक्स? यह सवाल हर उस व्यक्ति के लिए अहम हो जाता है जिसकी सालाना कमाई टैक्सेबल लिमिट के करीब या उससे ज्यादा होती है। भारत में आयकर (Income Tax) की गणना करना अब पहले से कहीं ज्यादा आसान हो गया है। टैक्सेबल इनकम (Taxable Income) की कैलकुलेशन को अगर सही तरीके से समझ लिया जाए, तो आप घर बैठे बिना किसी सीए या एक्सपर्ट की मदद के भी अपना टैक्स तय कर सकते हैं।

टैक्सेबल इनकम यानी उस आय का हिस्सा जिस पर आयकर अधिनियम के तहत टैक्स लगाया जाता है। यह इनकम विभिन्न कटौतियों (Deductions), छूटों (Exemptions) और रिबेट्स के बाद बचती है। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि कैसे आप खुद ही अपनी टैक्स योग्य इनकम का सही-सही अनुमान लगा सकते हैं।
सबसे पहले समझें क्या होती है ग्रॉस सैलरी
अपनी टैक्स योग्य इनकम कैलकुलेट करने की शुरुआत होती है आपकी कुल ग्रॉस इनकम से। ग्रॉस सैलरी में आपकी बेसिक सैलरी के साथ-साथ कई अन्य कंपोनेंट्स भी शामिल होते हैं जैसे हाउस रेंट अलाउंस (HRA), स्पेशल अलाउंस, बोनस, इंसेंटिव और अन्य भत्ते। इन सभी को जोड़कर आपको आपकी कुल ग्रॉस इनकम का पता चलता है।
कौन-कौन सी छूट मिलती है टैक्सेबल इनकम से पहले
जब आप अपनी ग्रॉस इनकम निकाल लेते हैं, तो अगला स्टेप होता है उन कंपोनेंट्स को हटाना जो आयकर के तहत छूट (Exemptions) के अंतर्गत आते हैं। उदाहरण के तौर पर, यदि आप किराए के घर में रहते हैं तो आपको HRA में छूट मिल सकती है। इसके अलावा स्टैंडर्ड डिडक्शन का फायदा भी सभी सैलरीड क्लास को मिलता है, जो कि ₹50,000 है। यदि आपकी सैलरी में लीव ट्रैवल अलाउंस (LTA) शामिल है और आपने यात्रा का खर्च डोक्युमेंटेशन सहित किया है, तो वह हिस्सा भी टैक्स से छूट के अंतर्गत आ सकता है।
कटौती यानी डिडक्शन का सही उपयोग करें
एक बार छूट निकालने के बाद, अब आता है कटौतियों (Deductions) का दौर। भारत सरकार ने आयकर अधिनियम की धारा 80C, 80D, 80CCD और अन्य के तहत विभिन्न कटौतियां प्रदान की हैं।
सबसे सामान्य डिडक्शन है धारा 80C के तहत – जिसमें आप EPF (Employees’ Provident Fund), PPF (Public Provident Fund), जीवन बीमा प्रीमियम (Life Insurance Premium), ELSS म्यूचुअल फंड्स और बच्चों की स्कूल फीस जैसे निवेश शामिल कर सकते हैं। इसकी अधिकतम सीमा ₹1.5 लाख रुपये है।
इसके अलावा, यदि आपने हेल्थ इंश्योरेंस लिया है तो धारा 80D के तहत आपको प्रीमियम पर कटौती मिल सकती है। इसमें ₹25,000 से लेकर ₹50,000 तक की राहत मिलती है, जो इस बात पर निर्भर करती है कि आप वरिष्ठ नागरिक हैं या नहीं।
टैक्सेबल इनकम कैसे निकालें?
इन सभी कटौती और छूटों को अपनी ग्रॉस इनकम से घटाने के बाद जो आंकड़ा बचेगा, वही आपकी कुल टैक्सेबल इनकम (Total Taxable Income) कहलाएगा। यह इनकम वह बेस होता है जिस पर सरकार आपको इनकम टैक्स लगाने वाली है। उदाहरण के तौर पर, अगर आपकी कुल इनकम ₹10 लाख है और आप ₹1.5 लाख धारा 80C के तहत, ₹25,000 धारा 80D के तहत और ₹50,000 स्टैंडर्ड डिडक्शन लेते हैं, तो आपकी टैक्सेबल इनकम ₹7.75 लाख बचेगी।
अब जानें कौन से टैक्स स्लैब पर लगेगा टैक्स
भारत सरकार ने व्यक्तिगत टैक्सदाताओं के लिए दो विकल्प दिए हैं – पुरानी टैक्स व्यवस्था (Old Regime) और नई टैक्स व्यवस्था (New Regime) । पुरानी व्यवस्था में आप उपरोक्त सभी छूटों और कटौतियों का लाभ उठा सकते हैं, लेकिन टैक्स स्लैब थोड़े ज्यादा होते हैं। वहीं नई टैक्स व्यवस्था में टैक्स स्लैब कम हैं, लेकिन अधिकतर डिडक्शन की अनुमति नहीं होती। आपको यह निर्णय लेना होता है कि कौन सी व्यवस्था आपके लिए फायदेमंद है और उसी के अनुसार टैक्स कैलकुलेशन करना होता है।
टैक्स रिबेट्स और सरचार्ज भी समझें
यदि आपकी टैक्सेबल इनकम ₹5 लाख या उससे कम है, तो आपको धारा 87A के तहत ₹12,500 तक की टैक्स रिबेट मिल सकती है। इसका अर्थ है कि आप पर कोई इनकम टैक्स नहीं लगेगा।
इसके अतिरिक्त यदि आपकी इनकम ₹50 लाख से अधिक है, तो आपको अतिरिक्त सरचार्ज का भुगतान करना पड़ सकता है, जो 10% से शुरू होकर अधिकतम 37% तक हो सकता है।
सैलरी से TDS कैसे जुड़ता है
कई बार लोग सोचते हैं कि उनका टैक्स तो पहले ही कट चुका है, लेकिन वे यह नहीं समझते कि TDS (Tax Deducted at Source) केवल अनुमान के आधार पर कटता है। साल के अंत में आपको यह मिलाना होता है कि आपकी वास्तविक टैक्स लायबिलिटी क्या है और कितना TDS कट चुका है।
यदि आपकी टैक्स लायबिलिटी अधिक है, तो आपको सेल्फ-असेसमेंट टैक्स भरना होगा और यदि TDS ज्यादा कटा है, तो रिफंड की पात्रता होगी।
कौन-कौन सी इनकम शामिल करनी होती है
टैक्स कैलकुलेशन करते समय केवल सैलरी ही नहीं बल्कि आपके सभी इनकम सोर्सेस को जोड़ना जरूरी है – जैसे हाउस प्रॉपर्टी से रेंटल इनकम, बैंक सेविंग्स और फिक्स्ड डिपॉजिट पर ब्याज, शेयर या म्यूचुअल फंड्स से कैपिटल गेन, और यदि आप किसी फ्रीलांस काम से कमाते हैं, तो वह भी।
खुद ही करें टैक्स कैलकुलेशन और बचाएं पैसा
अगर आप अपनी इनकम और खर्चों का ट्रैक रखते हैं, तो इनकम टैक्स की गणना करना कोई मुश्किल काम नहीं है। थोड़ी जागरूकता और सही जानकारी से आप न केवल टैक्स फाइलिंग में आत्मनिर्भर बन सकते हैं, बल्कि गैरजरूरी टैक्स पेमेंट से भी बच सकते हैं। इससे आपकी पर्सनल फाइनेंशियल प्लानिंग बेहतर होती है और आप निवेश के लिए ज्यादा विकल्प चुन सकते हैं, चाहे वह म्यूचुअल फंड्स हों, रिन्यूएबल एनर्जी (Renewable Energy) प्रोजेक्ट्स में निवेश हो या फिर आने वाले किसी IPO में भाग लेना।