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इन शब्दों का इस्तेमाल पर नहीं माना जाएगा SC-ST एक्ट का दोषी, जातिसूचक शब्दों को लेकर कोर्ट का बड़ा फैसला

राजस्थान हाई कोर्ट ने 'भंगी', 'नीच', 'भिखारी' जैसे शब्दों को जातिसूचक नहीं मानते हुए एससी/एसटी एक्ट के तहत आरोपों को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि इन शब्दों का प्रयोग जातिवाद को बढ़ावा देने के उद्देश्य से नहीं था, बल्कि प्रशासनिक असंतोष जताने के लिए किया गया था।

By PMS News
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इन शब्दों का इस्तेमाल पर नहीं माना जाएगा SC-ST एक्ट का दोषी, जातिसूचक शब्दों को लेकर कोर्ट का बड़ा फैसला,
Judgment of Rajasthan High Court

राजस्थान में जातिसूचक शब्दों को लेकर एक बड़ा फैसला सामने आया है। राजस्थान हाई कोर्ट की जोधपुर बेंच ने ‘भंगी’, ‘नीच’, ‘भिखारी’ और ‘मंगनी’ जैसे शब्दों के इस्तेमाल को लेकर महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई इन शब्दों का इस्तेमाल करता है तो उसे एससी/एसटी एक्ट के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इस फैसले ने जातिसूचक शब्दों के संदर्भ में कानून की व्याख्या पर नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है।

यह मामला चार आरोपियों के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के तहत लगाए गए आरोपों से जुड़ा था, जिन्हें इन शब्दों के इस्तेमाल के कारण कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ा था। दरअसल, इन चार लोगों ने अतिक्रमण हटाने गई एक सरकारी टीम पर आरोप लगाया था कि उन्होंने गलत माप की थी, जिसके जवाब में उन्होंने आपत्ति जताते हुए कुछ अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया था।

कोर्ट का निर्णय और तर्क

राजस्थान हाई कोर्ट ने इन आरोपियों के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के तहत आरोप हटा दिए और यह स्पष्ट किया कि ‘भंगी’, ‘नीच’, ‘भिखारी’ और ‘मंगनी’ जैसे शब्द जातिसूचक नहीं माने जाते। न्यायमूर्ति बीरेंद्र कुमार की सिंगल बेंच ने यह भी कहा कि आरोपियों का इन शब्दों का उपयोग जाति आधारित अपमान करने के उद्देश्य से नहीं था। कोर्ट ने यह भी कहा कि कोई यह साबित नहीं कर सका कि आरोपियों को उन सरकारी कर्मचारियों की जाति के बारे में जानकारी थी, जिनके खिलाफ यह शब्दों का प्रयोग किया गया था।

यह केस इस बात पर केंद्रित था कि आरोपियों ने इन शब्दों का इस्तेमाल लोकसेवकों द्वारा गलत माप की कार्रवाई पर विरोध जताने के रूप में किया था, न कि किसी जाति विशेष को निशाना बनाने के उद्देश्य से। कोर्ट ने यह माना कि आरोपियों का इरादा किसी भी व्यक्ति को जाति के आधार पर अपमानित करने का नहीं था, बल्कि यह प्रतिक्रिया सिर्फ प्रशासनिक कार्यों के प्रति असंतोष थी।

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बचाव पक्ष का तर्क

आरोपियों का पक्ष था कि वे न तो लोकसेवकों की जाति के बारे में जानते थे, और न ही उनके खिलाफ कोई ऐसा प्रमाण था जो यह सिद्ध कर सके कि उनका इरादा जाति आधारित अपमान करने का था। बचाव पक्ष ने यह भी दावा किया कि इस मामले में अभियोजन पक्ष का कोई ठोस गवाह नहीं था, और घटना सार्वजनिक रूप से नहीं हुई थी। कोर्ट ने इस बात को ध्यान में रखते हुए आरोपों को खारिज किया और फैसला याचिकाकर्ताओं के पक्ष में दिया।

एससी/एसटी एक्ट के तहत आरोपों की वैधता

यह फैसला एससी/एसटी एक्ट के तहत जातिवाद पर आधारित आरोपों की व्याख्या को पुनः परिभाषित करता है। राजस्थान हाई कोर्ट का यह निर्णय इस दृष्टिकोण को मजबूती प्रदान करता है कि केवल अपमानजनक शब्दों के प्रयोग को आधार बनाकर किसी व्यक्ति को एससी/एसटी एक्ट के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता, जब तक कि यह साबित न हो कि किसी व्यक्ति का इरादा जाति आधारित अपमान करने का था। इस फैसले ने एससी/एसटी एक्ट के दुरुपयोग से बचने के लिए एक महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश भी प्रदान किया है।

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