
हरियाणा सरकार ने राज्य के उन बुजुर्ग कलाकारों के सम्मान और सहयोग के लिए एक अनूठी पहल की है जिन्होंने जीवनभर कला-संस्कृति के क्षेत्र में अपना अमूल्य योगदान दिया है। इस योजना का नाम ‘पंडित लख्मीचंद कलाकार सामाजिक सम्मान योजना’ रखा गया है। इसके अंतर्गत पात्र वरिष्ठ कलाकारों को हर महीने ₹10,000 तक की पेंशन दी जाएगी। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी द्वारा घोषित यह योजना न केवल सम्मान का प्रतीक है, बल्कि उन कलाकारों के जीवन की आर्थिक सुरक्षा भी सुनिश्चित करती है, जो उम्र के इस पड़ाव पर आमदनी से वंचित रह जाते हैं।
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कला सेवा को मिलेगा सरकारी आर्थिक समर्थन
इस योजना का उद्देश्य स्पष्ट है—उन कलाकारों को सम्मान और सहायता देना जो दशकों से हरियाणा की सांस्कृतिक पहचान को जीवित रखने में लगे रहे हैं। यह पेंशन उन लोगों के लिए है जिन्होंने कम से कम 20 वर्षों तक संगीत, नृत्य, चित्रकला, नाटक या अन्य पारंपरिक कलाओं के माध्यम से समाज में योगदान दिया है। सरकार का मानना है कि इन प्रतिभाओं को अब सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की ज़िम्मेदारी शासन की है।
पात्रता की स्पष्ट शर्तें तय की गई हैं
इस योजना के तहत लाभ पाने के लिए आवेदक की आयु कम से कम 60 वर्ष होनी चाहिए और यह आयु परिवार पहचान पत्र (PPP) में प्रमाणित होनी चाहिए। इसके अलावा, वार्षिक आय के अनुसार दो पेंशन स्लैब बनाए गए हैं। जिन बुजुर्ग कलाकारों की वार्षिक आय ₹1.80 लाख से कम है, उन्हें ₹10,000 मासिक पेंशन दी जाएगी, जबकि ₹1.80 लाख से ₹3 लाख की आय वाले कलाकारों को ₹7,000 प्रतिमाह की सहायता दी जाएगी।
आवेदन प्रक्रिया को बनाया गया सरल और ऑनलाइन
पात्र कलाकारों को ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से आवेदन करना होगा, जिसमें परिवार पहचान पत्र, आय प्रमाण पत्र और कला क्षेत्र में योगदान से जुड़े दस्तावेज जैसे प्रमाणपत्र, पत्रिकाओं में प्रकाशित लेख या कार्यक्रमों की तस्वीरें अपलोड करनी होंगी। इसके बाद एक सरकारी समिति उनके दस्तावेजों की समीक्षा करेगी और अंतिम सूची जारी की जाएगी। यह प्रक्रिया पारदर्शी और त्वरित बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने का प्रयास
यह योजना सिर्फ आर्थिक सहायता नहीं बल्कि हरियाणा की सांस्कृतिक विरासत को जीवित बनाए रखने का माध्यम भी है। जिन कलाकारों ने वर्षों तक लोकगीतों, हरियाणवी थिएटर और पारंपरिक कला रूपों को जिंदा रखा, उन्हें अब यह योजना प्रेरणा और संबल देगी। इससे नई पीढ़ी को भी यह संदेश जाएगा कि कला का सम्मान सिर्फ मंचों तक सीमित नहीं, बल्कि जीवनभर की सेवा का भी मूल्यांकन किया जाएगा।
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