
उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में सोमवार शाम को राजधानी एक्सप्रेस (20504) और काठगोदाम एक्सप्रेस (15044) को पटरी से उतारने की साजिश नाकाम हो गई। लोको पायलटों की सतर्कता और सूझबूझ ने एक संभावित बड़ी रेल दुर्घटना को टाल दिया, जिससे सैकड़ों यात्रियों की जान बचाई जा सकी। यह घटना दलेलनगर और उमरताली स्टेशनों के बीच रेलवे ट्रैक पर उस समय घटी जब अज्ञात तत्वों ने ट्रेन के ट्रैक पर लकड़ी के गुटके और अर्थिंग वायर को फंसा दिया था।
कैसे नाकाम हुई राजधानी एक्सप्रेस को डिरेल करने की साजिश
यह घटना सोमवार शाम लगभग 5:45 बजे हुई जब राजधानी एक्सप्रेस, जो दिल्ली से डिब्रूगढ़ जा रही थी, किलोमीटर संख्या 1129/14 पर पहुंची। लोको पायलट ने ट्रैक पर अवरोध देखे और तुरंत इमरजेंसी ब्रेक लगाकर ट्रेन को रोक दिया। जांच करने पर सामने आया कि किसी ने लकड़ी के गुटके को रेलवे के अर्थिंग वायर में इस तरह फंसा रखा था कि वह ट्रैक के संचालन में बाधा डाल सके। लोको पायलट और स्टाफ ने बिना देर किए लकड़ी और वायर को हटाया और रेलवे अधिकारियों को इसकी सूचना दी। इसके बाद ट्रेन लगभग दस मिनट की देरी से अपनी यात्रा पर आगे बढ़ी।
काठगोदाम एक्सप्रेस को भी बनाया गया निशाना
इस हादसे के कुछ ही समय बाद उसी स्थान पर एक और कोशिश की गई। इस बार निशाना बनी काठगोदाम एक्सप्रेस (15044)। ट्रैक पर दोबारा इसी तरह का अवरोध पाया गया, लेकिन लोको पायलट ने समय रहते ट्रेन को रोक दिया। इस प्रकार, लगातार दो प्रयासों में एक ही स्थान को चुनकर बड़ी दुर्घटना को अंजाम देने की मंशा साफ झलकती है।
रेलवे सुरक्षा एजेंसियों और पुलिस ने संभाला मोर्चा
घटना की जानकारी मिलते ही रेलवे सुरक्षा बल (RPF), राज्य पुलिस (GRP) और स्थानीय प्रशासन घटनास्थल पर पहुंच गया। हरदोई के पुलिस अधीक्षक नीरज कुमार जादौन ने मौके का निरीक्षण किया और जांच के निर्देश दिए। अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि यह घटना सामान्य नहीं है और इसमें किसी गहरी साजिश की आशंका है। ट्रैक की निगरानी के लिए अतिरिक्त सुरक्षा व्यवस्था की गई है और संदिग्धों की तलाश शुरू कर दी गई है।
रेलवे सुरक्षा पर उठते सवाल
पिछले कुछ महीनों में ट्रेनों को डिरेल करने की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। कानपुर में कालिंदी एक्सप्रेस के साथ हुई घटना और बिहार, झारखंड, और मध्य प्रदेश में हुई रेल दुर्घटनाएं इस ओर संकेत कर रही हैं कि रेलवे की सुरक्षा में बड़ी खामियां हैं। इन घटनाओं ने रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर और सुरक्षा उपायों पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
रेलवे प्रशासन द्वारा विभिन्न प्रकार के स्मार्ट सर्विलांस सिस्टम, ड्रोन निगरानी, और AI-बेस्ड ट्रैकिंग जैसी तकनीकों को अपनाने की बात कही जा रही है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर इनका क्रियान्वयन धीमा है। ट्रेनों की सुरक्षा से जुड़ी मौजूदा व्यवस्था में बदलाव की तत्काल आवश्यकता है।
लोको पायलटों की भूमिका बनी जीवन रक्षक
इस घटना में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका लोको पायलटों की रही जिन्होंने समय रहते खतरों को भांपकर अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन किया। ट्रेनों की रफ्तार, विशेष रूप से राजधानी जैसी तेज़ ट्रेनों के मामले में, किसी भी सेकंड की चूक एक बड़े हादसे में बदल सकती थी। उनकी त्वरित प्रतिक्रिया ने इस पूरी स्थिति को संभाल लिया।
इससे यह स्पष्ट होता है कि लोको पायलटों को प्रशिक्षण, तकनीकी उपकरणों, और मनोवैज्ञानिक मजबूती की और अधिक आवश्यकता है, जिससे वे भविष्य में भी ऐसी घटनाओं से सफलतापूर्वक निपट सकें।
रेलवे को अब उठाने होंगे सख्त कदम
यह घटना महज एक चेतावनी नहीं, बल्कि रेलवे प्रशासन के लिए एक गंभीर अलार्म है। रेलवे को अब अपनी रेल सुरक्षा नीति को नया रूप देना होगा। प्रत्येक संवेदनशील ट्रैक पर सीसीटीवी कैमरे, नाइट विज़न ड्रोन, और रेगुलर पेट्रोलिंग को अनिवार्य करना होगा।
इसके अलावा, रेलवे को स्थानीय नागरिकों के साथ समन्वय बनाकर उन्हें भी निगरानी में शामिल करना चाहिए ताकि ऐसे खतरों की समय रहते जानकारी मिल सके। रेलवे सुरक्षा बल (RPF) को आधुनिक तकनीकों और पर्याप्त मानव संसाधन से लैस करना अब और टाला नहीं जा सकता।