सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह साफ कर दिया कि IAS और IPS अधिकारियों के बच्चों को अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) आरक्षण से बाहर रखने का फैसला अदालत नहीं कर सकती। अदालत ने याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा कि यह संसद का दायित्व है कि वह इस मुद्दे पर कोई निर्णय ले और कानून बनाए।
याचिका मध्य प्रदेश के संतोष मालवीय ने दाखिल की थी, जिसमें मांग की गई थी कि SC और ST आरक्षण का लाभ IAS और IPS अफसरों के बच्चों को नहीं मिलना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अदालत की भूमिका नीतिगत निर्णय लेने की नहीं है।
SC और ST आरक्षण में क्रीमी लेयर का सुझाव
पिछले साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट की एक सात जजों की बेंच ने SC और ST आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू करने का सुझाव दिया था। बेंच का मानना था कि दलित और आदिवासी समुदाय के उन व्यक्तियों के बच्चों को आरक्षण से बाहर रखना चाहिए, जिनके माता-पिता उच्च पदों जैसे IAS और IPS पर हैं। इस सुझाव के पीछे तर्क यह था कि इस वर्ग के वंचित तबके को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जो अभी भी सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं।
हालांकि, उस समय भी यह सुझाव केवल एक जज की व्यक्तिगत राय थी, जिसे अन्य दो जजों ने समर्थन दिया था। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह मुद्दा संसद के विचाराधीन है, और इस पर कोई निर्णय लेना विधायिका का काम है।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का फैसला
संतोष मालवीय ने यह याचिका पहले मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में दाखिल की थी। हाई कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में उठाना चाहिए। मालवीय ने इसके बाद शीर्ष अदालत का रुख किया। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि अदालत की पिछली टिप्पणी को आधार बनाकर यह मांग नहीं की जा सकती।
जस्टिस बीआर गवई ने कहा, “हमारी ओर से कोई आदेश जारी नहीं किया गया था। यह केवल एक जज की व्यक्तिगत राय थी। सात जजों की बेंच का निर्णय यह था कि SC और ST कोटा में उपवर्गीकरण होना चाहिए, लेकिन इसे लागू करना संसद का काम है।”
आरक्षण का लाभ वंचित वर्ग
अदालत ने यह स्पष्ट किया कि आरक्षण का उद्देश्य समाज के उन वंचित वर्गों को मुख्यधारा में लाना है, जो अब तक पिछड़े हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर IAS और IPS अधिकारियों के बच्चों को आरक्षण का लाभ मिलता है, तो यह उन वंचित तबकों के साथ अन्याय होगा, जो इस सुविधा के वास्तविक हकदार हैं।
हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि वह इस मामले में कोई अंतिम निर्णय नहीं दे सकती क्योंकि यह संसद का विशेषाधिकार है।
क्रीमी लेयर पर बहस जारी
SC और ST आरक्षण में क्रीमी लेयर का मुद्दा लंबे समय से चर्चा का विषय रहा है। इसे लागू करने के पक्ष में तर्क दिया जाता है कि उच्च पदों पर आसीन परिवारों के बच्चों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए। वहीं, इसके विरोध में कहा जाता है कि आरक्षण का उद्देश्य जातिगत भेदभाव को खत्म करना है, न कि आर्थिक स्थिति को आधार बनाना।