कर्मचारी पेंशन योजना (EPS), 1995 के तहत न्यूनतम पेंशन राशि में वृद्धि की मांग पिछले कई वर्षों से जोर पकड़ रही है। यह मुद्दा लोकसभा में सांसद असदुद्दीन ओवैसी द्वारा उठाया गया, जिन्होंने सरकार से न्यूनतम पेंशन में इजाफे को लेकर पूछताछ की। उन्होंने यह जानने की कोशिश की कि क्या सरकार को इस संबंध में कोई अनुरोध प्राप्त हुआ है और पेंशन बढ़ाने से जुड़े किसी प्रस्ताव पर काम चल रहा है।
वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी का जवाब
प्रश्न के जवाब में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने स्पष्ट किया कि मिनिस्ट्री ऑफ लेबर एंड एम्प्लॉयमेंट को EPS के तहत न्यूनतम पेंशन राशि बढ़ाने के अनुरोध प्राप्त हुए हैं। इन अनुरोधों में प्रमुख रूप से ट्रेड यूनियनों का योगदान शामिल है। मंत्री ने बताया कि यह योजना ‘परिभाषित योगदान-परिभाषित लाभ’ मॉडल पर आधारित है, जिसमें नियोक्ता की तरफ से सैलरी के 8.33% हिस्से का योगदान पेंशन फंड में किया जाता है। इसके अलावा, सरकार सैलरी के 1.16% हिस्से के बराबर बजटीय सहायता भी देती है।
फंड का वार्षिक मूल्यांकन और बीमांकिक घाटा
EPS, 1995 के तहत हर साल पेंशन फंड का मूल्यांकन किया जाता है। 31 मार्च 2019 के फंड मूल्यांकन के अनुसार, इसमें बीमांकिक घाटा पाया गया। मंत्री ने कहा कि यह योजना अपने मौजूदा स्वरूप में निर्धारित फंड से सभी फायदों का भुगतान करती है, और इसका वित्तीय स्वास्थ्य सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है।
पेंशन बढ़ाने के प्रस्ताव और उनका वर्तमान स्थिति
मंत्री ने बताया कि सितंबर 2014 में EPS, 1995 के तहत न्यूनतम पेंशन राशि को 1,000 रुपये प्रति माह तक बढ़ाया गया था। इसके बाद, लेबर मिनिस्ट्री ने इस राशि को 2,000 रुपये प्रति माह तक बढ़ाने का प्रस्ताव रखा था। हालांकि, इस प्रस्ताव को अभी तक सरकार की मंजूरी नहीं मिली है।
नियोक्ताओं और पेंशनर्स की भूमिका
EPS, 1995 के तहत पेंशन राशि का निर्धारण मुख्य रूप से नियोक्ताओं और सरकार के योगदान से किया जाता है। इसे बढ़ाने के लिए न केवल सरकार की मंशा, बल्कि फंड के वित्तीय स्थायित्व को भी सुनिश्चित करना होगा।