नए साल का आगाज़ धूम्रपान करने वालों के लिए बड़ा बदलाव लेकर आ रहा है। ई-सिगरेट, जिसे धूम्रपान का कम नुकसानदायक विकल्प माना जाता था, अब कई देशों में प्रतिबंधित होने जा रही है। बेल्जियम ने 1 जनवरी 2025 से डिस्पोजेबल ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है, और भारत में इस पर पहले से ही सख्त रोक है।
ई-सिगरेट: क्या है और क्यों खतरनाक है?
ई-सिगरेट, जिसे “वेप” भी कहते हैं, एक बैटरी-चालित डिवाइस है जो निकोटीन और अन्य रसायनों की भाप उत्पन्न करती है। यह भाप एक खास ई-लिक्विड को गर्म करके बनाई जाती है। ई-लिक्विड में प्रोपिलीन ग्लाइकोल, ग्लिसरीन, फ्लेवरिंग एजेंट, और निकोटीन होता है। इसे पारंपरिक सिगरेट की तुलना में कम हानिकारक कहा जाता है, लेकिन इसमें मौजूद निकोटीन और रसायन शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं। इसके अलावा, यह डिवाइस पर्यावरण के लिए भी हानिकारक है, क्योंकि इसके डिस्पोजल से प्लास्टिक और बैटरी का कचरा बढ़ता है।
बेल्जियम और भारत का कदम
बेल्जियम ने पर्यावरण और बच्चों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए 1 जनवरी 2025 से डिस्पोजेबल ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है। वहीं, भारत में 2019 से ई-सिगरेट पर पूरी तरह से प्रतिबंध लागू है। यहां न केवल इसका उपयोग, बल्कि इसे बनाना, बेचना और रखना भी गैर-कानूनी है।
ई-सिगरेट का इतिहास और नुकसान
ई-सिगरेट की शुरुआत 2003 में चीनी फार्मासिस्ट Hon Lik ने की थी। इसे पारंपरिक सिगरेट का सुरक्षित विकल्प माना गया, लेकिन समय के साथ यह स्पष्ट हुआ कि यह भी स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। यह हृदय रोग, फेफड़ों की समस्याएं, और कैंसर जैसी बीमारियों का कारण बन सकती है।
सरकार की सख्ती और जागरूकता अभियान
ई-सिगरेट पर प्रतिबंध के बावजूद, इसे अवैध रूप से इस्तेमाल करने वालों की संख्या कम नहीं हुई है। सरकार ने जागरूकता अभियान चलाकर इसके दुष्प्रभावों के बारे में जानकारी दी है और सख्त कानून लागू किए हैं।
क्या यह रोक सही कदम है?
विशेषज्ञों का मानना है कि ई-सिगरेट पर प्रतिबंध स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए फायदेमंद होगा। इसके उपयोग पर रोक लगाने से निकोटीन की लत पर नियंत्रण पाया जा सकता है और प्लास्टिक कचरे की समस्या को भी हल किया जा सकता है।
नए साल पर बड़ा बदलाव
नए साल में यह प्रतिबंध न केवल बेल्जियम, बल्कि अन्य देशों के लिए भी एक मिसाल बनेगा। सरकारों का यह कदम दिखाता है कि स्वास्थ्य और पर्यावरण की रक्षा के लिए सख्त नीतियां कितनी जरूरी हैं।