
देश की न्यायपालिका से जुड़ा एक गंभीर मामला हाल ही में सामने आया है, जिसमें एक घूसखोर जज (Corrupt Judge) ने खुद पर लगे भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के बावजूद इस्तीफा (Resignation) देने से इनकार कर दिया है। अब यह मामला सीधे देश के राष्ट्रपति (President) और प्रधानमंत्री (Prime Minister) के हस्तक्षेप की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में यह देखना बेहद अहम होगा कि इस संवेदनशील मुद्दे पर अगला संवैधानिक कदम क्या होगा।
यह भी देखें: सरकार को कोर्ट ने दिया सबसे बड़ा झटका – इस आम आदमी को मिलेंगे 1.76 करोड़! क्या है इस केस की कहानी?
भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद भी इस्तीफे से इनकार
घटना ने उस समय तूल पकड़ा जब एक उच्च न्यायिक पद पर आसीन जज पर घूस लेने (Bribery Charges) के गंभीर आरोप लगे। सूत्रों के मुताबिक, जज पर आरोप है कि उन्होंने एक बड़े कॉर्पोरेट केस में फैसला सुनाने के एवज में करोड़ों रुपये की रिश्वत ली। इस पूरे मामले की जांच के बाद जब उनसे नैतिकता के आधार पर इस्तीफा मांगा गया, तो उन्होंने साफ शब्दों में इंकार कर दिया।
न्यायपालिका की गरिमा पर सवाल
जज द्वारा इस्तीफा न देने का फैसला न केवल संवैधानिक प्रक्रिया के लिए एक चुनौती है, बल्कि इससे न्यायपालिका की साख पर भी बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। देश के कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यदि कोई जज स्वेच्छा से इस्तीफा नहीं देता, तो उसे हटाने की प्रक्रिया संसद के माध्यम से शुरू करनी होती है। इसे इंपीचमेंट (Impeachment) प्रक्रिया कहा जाता है।
यह भी देखें: ‘राइट टू प्रॉपर्टी’ गया, अब क्या सरकार की मनमानी चलेगी? हाई कोर्ट ने सुनाया ऐसा फैसला सरकार होगी मजबूर
अब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की भूमिका
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए अब मामला राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक पहुंच चुका है। भारतीय संविधान के तहत, किसी जज को हटाने की प्रक्रिया तभी शुरू की जा सकती है जब संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित हो। इसके लिए संसद को विशेष सत्र बुलाने की आवश्यकता पड़ सकती है।
प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) और राष्ट्रपति भवन (Rashtrapati Bhavan) से जुड़े सूत्रों का कहना है कि सरकार इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार कर रही है और जल्द ही कोई ठोस कदम उठाया जा सकता है।
कानूनी प्रक्रिया और संवैधानिक बाधाएं
भारत में किसी जज को हटाने की प्रक्रिया बेहद कठिन और लंबी होती है। यह इसलिए किया गया है ताकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनी रहे और कोई राजनीतिक दबाव न हो। हालांकि, जब जज पर घूसखोरी जैसे आपराधिक मामले सामने आते हैं, तब इस प्रक्रिया को तेज करने की जरूरत महसूस होती है।
संविधान के अनुच्छेद 124(4) और 217 के तहत सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों को हटाने की प्रक्रिया तय है। इसमें पहला कदम संसद में नोटिस देना होता है, उसके बाद जांच समिति गठित होती है, और यदि समिति आरोपों को सही पाती है, तभी संसद उसे हटाने के प्रस्ताव पर वोट करती है।
यह भी देखें: ATM में ये छोटी सी ट्रिक बचा सकती है आपका लाखों का नुकसान – ‘Cancel’ बटन का सच जानें अब!
राजनीतिक और सार्वजनिक दबाव
यह मामला अब महज न्यायपालिका तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि इसने आम जनता का ध्यान भी अपनी ओर खींच लिया है। सोशल मीडिया पर लोग लगातार सरकार से कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। साथ ही विपक्षी दल भी इस मुद्दे को लेकर सरकार पर हमलावर हैं।
कई मानवाधिकार और पारदर्शिता से जुड़ी संस्थाओं ने इस घटना की निंदा की है और कहा है कि यह न्याय व्यवस्था में जनता के भरोसे को कमजोर करता है।
क्या हो सकता है अगला कदम?
अब जब जज ने इस्तीफा देने से साफ मना कर दिया है, तो अगला संवैधानिक विकल्प इंपीचमेंट प्रक्रिया ही है। इसके तहत संसद को औपचारिक रूप से प्रस्ताव लाना होगा। इसके लिए विपक्ष और सत्ताधारी दलों का समर्थन आवश्यक होगा।
यह भी देखें: करण जौहर ने धर्मा को क्यों बेचा? 50% हिस्सेदारी के पीछे छिपी हैरान कर देने वाली वजह आई सामने!
यदि यह प्रक्रिया सफल होती है, तो यह भारत के इतिहास में गिने-चुने मामलों में से एक होगा जब किसी जज को भ्रष्टाचार के आरोप में संवैधानिक प्रक्रिया के तहत हटाया जाएगा। इससे पहले केवल एक जज — जस्टिस वी. रामास्वामी — पर ऐसा प्रस्ताव लाया गया था, लेकिन वह संसद में पास नहीं हो सका था।