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चीन ने 10 बार कहा चोमोलुंगमा–चोमोलुंगमा और इस देश के सामने खड़ा हो गया भारी संकट

नेपाल में 'सगरमाथा संवाद' के दौरान चीन ने माउंट एवरेस्ट को बार-बार 'चोमोलुंगमा' कहकर अपनी कूटनीतिक चाल चल दी। नेपाल की ओर से इस पर चुप्पी ने विशेषज्ञों को चौंका दिया है। यह मुद्दा सिर्फ नाम का नहीं, बल्कि क्षेत्रीय प्रभुत्व और सांस्कृतिक पहचान की लड़ाई बन गया है। भविष्य में यह अंतरराष्ट्रीय विवाद की शक्ल ले सकता है, खासकर भारत-चीन-नेपाल के त्रिकोणीय रिश्तों में।

By PMS News
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चीन ने 10 बार कहा चोमोलुंगमा–चोमोलुंगमा और इस देश के सामने खड़ा हो गया भारी संकट
चोमोलुंगमा

नेपाल में हाल ही में आयोजित ‘सगरमाथा संवाद’ कार्यक्रम के दौरान चीन की एक नई कूटनीतिक चाल सामने आई है, जिसने क्षेत्रीय भू-राजनीति में एक नया आयाम जोड़ दिया है। इस संवाद में माउंट एवरेस्ट को लेकर चीन के प्रतिनिधि शियाओ जी ने उसे बार-बार ‘चोमोलुंगमा’ कहकर संबोधित किया, जो कि पर्वत का चीनी नाम है। यह कदम न केवल नेपाल के प्रयासों को चुनौती देता है, बल्कि इसे बीजिंग की माउंट एवरेस्ट पर सांस्कृतिक और राजनीतिक दावा स्थापित करने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा रहा है।

इस सम्मेलन का नाम ‘सगरमाथा’ रखा गया था, जो कि माउंट एवरेस्ट का नेपाली नाम है। नेपाल इस नाम का प्रचार कर यह स्थापित करना चाहता है कि दुनिया की सबसे ऊँची चोटी पर उसका ऐतिहासिक और भौगोलिक अधिकार है। मगर चीन के प्रतिनिधि द्वारा कार्यक्रम के मंच से एवरेस्ट को ‘चोमोलुंगमा’ कहे जाने और नेपाल के नेताओं की इस पर चुप्पी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

चीन की ‘नाम राजनीति’ और कूटनीतिक संकेत

शियाओ जी ने अपने भाषण में कम से कम 10 बार ‘चोमोलुंगमा’ शब्द का प्रयोग किया। उनका यह भाषण चीनी भाषा में था, लेकिन उपस्थित नेपाली अधिकारियों और अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों ने इसे साफ तौर पर समझा और नोटिस भी किया। नेपाल के विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने अनौपचारिक रूप से स्वीकारा कि इस टिप्पणी को देखा और समझा गया, लेकिन इस पर सार्वजनिक प्रतिक्रिया नहीं दी गई।

यह चीन की भू-राजनीतिक रणनीति का हिस्सा लगता है, जिसमें वह सांस्कृतिक और भाषाई दावों के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों पर अप्रत्यक्ष रूप से अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश करता है। यह रणनीति भारत में भी देखी जा चुकी है, जहां चीन ने कई बार अरुणाचल प्रदेश के स्थानों के नाम बदलने की कोशिश की है और भारत ने हर बार इसे कड़ी प्रतिक्रिया के साथ खारिज किया है।

नेपाल की चुप्पी और बढ़ता भू-राजनीतिक दबाव

इस कार्यक्रम में नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली, विदेश मंत्री आरजू राणा देउबा और वित्त मंत्री बिष्णु पौडेल जैसे शीर्ष नेता उपस्थित थे। बावजूद इसके, किसी भी नेपाली नेता ने चीन के इस स्पष्ट सांस्कृतिक हस्तक्षेप पर कोई टिप्पणी नहीं की। यह चुप्पी नेपाल की विदेश नीति में संतुलन साधने की कोशिश का नतीजा हो सकती है, लेकिन यह भविष्य में उसे कूटनीतिक रूप से कमजोर कर सकती है।

गौरतलब है कि हाल ही में पीएम ओली ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की थी कि माउंट एवरेस्ट को उसके नेपाली नाम ‘सगरमाथा’ से जाना जाए। पर अब, उसी धरती से चीन द्वारा ‘चोमोलुंगमा’ शब्द का प्रयोग और उस पर सरकार की चुप्पी विशेषज्ञों और आम लोगों दोनों के लिए चिंता का विषय बन गया है।

क्षेत्रीय तनाव की आहट और वैश्विक प्रतिक्रियाएँ

सगरमाथा संवाद में बांग्लादेश, भूटान, भारत, जापान, कतर, पाकिस्तान, यूके और यूएई जैसे देशों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति ने इस कार्यक्रम को अंतरराष्ट्रीय मंच बना दिया था। ऐसे में चीन के इस शब्द प्रयोग ने न केवल नेपाल को कूटनीतिक असहजता में डाला, बल्कि यह संदेश भी दिया कि चीन अपने सांस्कृतिक प्रभाव का विस्तार क्षेत्रीय सीमाओं से परे करने को तत्पर है।

भारत पहले ही चीन की नामकरण नीति को गंभीरता से लेता रहा है और यह मुद्दा अब हिमालयी क्षेत्र में एक नया विवाद उत्पन्न कर सकता है। माउंट एवरेस्ट का नामकरण सिर्फ एक भाषाई बहस नहीं, बल्कि यह सांस्कृतिक, राजनीतिक और रणनीतिक प्रभुत्व के संघर्ष की शुरुआत का संकेत हो सकता है।

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