बिहार सरकार ने राज्य में जमीन से जुड़े विवादों को खत्म करने और पुराने दस्तावेज़ों की अनुपलब्धता के कारण उत्पन्न समस्याओं को हल करने के लिए एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री दिलीप जायसवाल ने घोषणा की है कि अगर कोई व्यक्ति पिछले 50 वर्षों से किसी जमीन पर रह रहा है और नियमित रूप से रसीद उसके नाम से कट रही है, तो उसे उस जमीन का मालिकाना हक मिलेगा। इस पहल से लाखों लोगों को लाभ मिलने की उम्मीद है, खासकर उन लोगों को जिनके पुराने दस्तावेज़ प्राकृतिक आपदाओं, दीमक, या आग के कारण नष्ट हो चुके हैं।
पुराने दस्तावेज़ नहीं? कोई चिंता नहीं
मंत्री ने स्पष्ट किया कि पुराने दस्तावेजों की अनुपलब्धता से परेशान होने की जरूरत नहीं है। कई मामलों में, बाढ़ या अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण दस्तावेज़ खराब हो जाते हैं। ऐसे में सरकारी दफ्तरों में रिकॉर्ड का न मिलना भी आम समस्या है। लेकिन इस नई नीति के तहत, सरकारी रिकॉर्ड न मिलने की स्थिति में भी जमीन के लिए मालिकाना हक मिल सकेगा।
रसीद से मिलेगा मालिकाना हक
यह नीति खासकर उन लोगों के लिए राहत लेकर आई है जो दशकों से जमीन पर रह रहे हैं, लेकिन उनके पास कानूनी दस्तावेज़ नहीं हैं। मंत्री ने कहा कि जिनके नाम से जमीन की रसीद कट रही है, उन्हें जमीन का मालिक माना जाएगा। इसके अलावा, जमीन की वंशावली की प्रक्रिया को भी सरल बनाया गया है। अब स्व-प्रमाणित वंशावली मान्य होगी, और इसे किसी अन्य माध्यम से प्रमाणित कराने की आवश्यकता नहीं होगी।
आपसी सहमति से बंटी जमीन को मान्यता
इस पहल के तहत, अगर जमीन आपसी सहमति से बंटी गई है, तो उसे भी मान्यता दी जाएगी। इससे जमीन विवादों में कमी आने की उम्मीद है। सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि इस सर्वेक्षण के बाद लोगों को कागजी प्रक्रिया की जटिलताओं का सामना नहीं करना पड़ेगा।
लोगों को मिलेगा बड़ा फायदा
यह सर्वेक्षण लाखों परिवारों के जीवन को आसान बनाने वाला साबित होगा। खासकर उन ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के निवासियों के लिए, जो बिना दस्तावेज़ के वर्षों से अपनी जमीन पर रह रहे हैं। यह कदम राज्य में सामाजिक स्थिरता और भूमि विवादों के समाधान की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।