भारत में बैंकिंग सेक्टर की निगरानी और संचालन की ज़िम्मेदारी पूरी तरह से रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) पर निर्भर है। हाल ही में एक अहम मामला सामने आया, जिसमें महाराष्ट्र स्थित द सिटी कोऑपरेटिव बैंक का लाइसेंस आरबीआई ने रद्द कर दिया। यह फैसला बैंक की वित्तीय स्थिति में गंभीर गिरावट और नियमों के पालन में चूक के चलते लिया गया।
द सिटी कोऑपरेटिव बैंक का लाइसेंस रद्द क्यों किया गया?
RBI ने जांच के दौरान पाया कि बैंक के पास न तो पर्याप्त पूंजी है और न ही भविष्य में कमाई की कोई संभावना। यह ग्राहकों के हितों और बैंकिंग नियमों के गंभीर उल्लंघन का मामला है।
इस मामले में आरबीआई ने सिटी कोऑपरेटिव बैंक के सभी बैंकिंग कार्यों को बंद करने और सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार को लिक्विडेटर नियुक्त करने का आदेश दिया। केंद्रीय बैंक ने यह भी स्पष्ट किया कि मौजूदा वित्तीय स्थिति में यह बैंक अपने जमाकर्ताओं को पूरा भुगतान करने में सक्षम नहीं है।
ग्राहकों की जमा राशि का क्या होगा?
जब किसी बैंक का लाइसेंस रद्द होता है, तो ग्राहक की सबसे बड़ी चिंता उनकी जमा पूंजी को लेकर होती है। इस संदर्भ में, भारतीय रिजर्व बैंक ने आश्वासन दिया है कि जमाकर्ता ₹5 लाख तक की राशि का दावा कर सकते हैं, जो कि जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम (DICGC) द्वारा संरक्षित है।
सिटी कोऑपरेटिव बैंक के मामले में लगभग 87% जमाकर्ताओं को उनकी पूरी जमा राशि वापस मिल जाएगी। DICGC ने पहले ही ₹230.99 करोड़ का भुगतान प्रक्रिया में डाल दिया है।
आरबीआई का रुख
आरबीआई ने यह सुनिश्चित किया कि बैंकिंग सेवाओं की अखंडता बनी रहे। इस बैंक का लाइसेंस रद्द करने का प्रमुख कारण यह है कि यह न केवल ग्राहकों को पूरा भुगतान करने में असमर्थ था, बल्कि इसका संचालन जनहित के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता था।
बैंकिंग कार्यों पर लगाए गए प्रतिबंध
लाइसेंस रद्द होने के बाद, बैंक पर निम्नलिखित कार्यों पर पूरी तरह रोक लग गई है:
- नए जमाकर्ताओं से धन स्वीकार करना।
- ग्राहकों को ऋण प्रदान करना।
- अन्य बैंकिंग गतिविधियों का संचालन।
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