
उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित बद्रीनाथ धाम हिंदू धर्म के चार धामों में से एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। यह स्थान भगवान विष्णु के अवतार बद्रीनारायण को समर्पित है, और यहां प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु अपनी श्रद्धा अर्पित करने आते हैं। लेकिन इस स्थल का इतिहास उतना ही रहस्यमय है जितना इसकी धार्मिक महत्ता। बहुत से इतिहासकारों का मानना है कि पहले इस स्थल पर बौद्ध धर्म का प्रभाव था और कुछ लोग इसे बौद्ध धर्म से संबंधित भी मानते हैं। क्या बद्रीनाथ कभी बौद्ध मठ था? यह सवाल हाल ही में चर्चाओं में आ गया है, और इस पर नए-नए दावे किए गए हैं।
कुछ इतिहासकारों और बौद्ध ग्रंथों के अनुसार, 8वीं शताब्दी से पहले बद्रीनाथ क्षेत्र में बौद्ध धर्म का प्रभाव था। एक मान्यता यह भी है कि वर्तमान मंदिर स्थल पर कभी बौद्ध विहार या मठ था, जहां भगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थापित थी। इसके अलावा, कुछ विद्वानों का यह भी कहना है कि आज जो मंदिर भगवान विष्णु के पूजन के लिए प्रसिद्ध है, वह पहले बौद्ध अनुयायियों का स्थल हुआ करता था। दक्षिण भारत के अभिनेता प्रकाश राज ने हाल ही में यह दावा किया कि बद्रीनाथ और केदारनाथ जैसे कई मंदिरों का निर्माण बौद्ध स्तूपों और मठों को तोड़कर किया गया था। हालांकि, इस दावे को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है।
दो धर्मों के बीच संघर्ष और बद्रीनाथ की ऐतिहासिक उत्पत्ति
उत्तराखंड के प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर अजय रावत इस बौद्ध धर्म से जुड़े दावों को खारिज करते हैं। उनका कहना है कि बद्रीनाथ का बौद्ध धर्म से कोई सीधा संबंध नहीं था। उनके अनुसार, पहले एक मंदिर तिब्बत के थोलिंग मठ में स्थित था, जो सनातन धर्म की परंपराओं का प्रतीक था। लेकिन जब बौद्ध धर्म का प्रभाव बढ़ा और दोनों धर्मों के अनुयायियों के बीच संघर्ष हुआ, तो सनातन धर्म के अनुयायी थोलिंग मठ छोड़कर वर्तमान बद्रीनाथ क्षेत्र में शरण लेने के लिए पहुंचे। इस परिपेक्ष्य में बद्रीनाथ का इतिहास और भी दिलचस्प बनता है।
बद्रीनाथ और थोलिंग मठ का संबंध
प्रोफेसर रावत ने यह भी बताया कि आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में बद्रीनाथ मंदिर की स्थापना की थी। मंदिर से जुड़े दस्तावेजों के अनुसार, 1962 तक जब मंदिर के कपाट खोले जाते थे, तब पहली पूजा के बाद प्रसाद बद्रीनाथ से थोलिंग मठ तक भेजा जाता था, और बद्रीनाथ को थोलिंग मठ से चवर भेजा जाता था, जिसका उपयोग मंदिर में पूजा के लिए किया जाता था। लेकिन 1962 के बाद इस प्रथा को समाप्त कर दिया गया।
भगवान विष्णु की मूर्ति और बौद्ध धर्म का भेद
प्रोफेसर रावत यह भी स्पष्ट करते हैं कि बद्रीनाथ मंदिर में स्थापित मूर्ति भगवान विष्णु की है, न कि भगवान बुद्ध की। भगवान विष्णु की मूर्ति पद्मासन मुद्रा में विराजमान है, लेकिन इसके बाल खुले हुए हैं, जो सनातन धर्म की पहचान हैं। वहीं बौद्ध धर्म की मूर्तियों में बाल जटाओं के रूप में बंधे होते हैं, जिन्हें उष्णीष कहा जाता है। इस प्रकार, बद्रीनाथ और बौद्ध धर्म के बीच संबंध का रहस्य सिर्फ एक भ्रम प्रतीत होता है, जिसे शोध और ऐतिहासिक तथ्यों ने साफ कर दिया है।