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सुप्रीम कोर्ट ने दिया गैर दलित बच्चों को SC का रिजर्वेशन,क्या है अनुच्छेद 142, जिसके तहत दिया ये फैसला

अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को विवेकाधीन शक्ति प्रदान करता है। हाल ही में इस प्रावधान का उपयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक तलाक के मामले में बच्चों की जाति, भरण-पोषण और संपत्ति के वितरण से जुड़े फैसले सुनाए। यह निर्णय सामाजिक न्याय और व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।

By PMS News
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सुप्रीम कोर्ट ने दिया गैर दलित बच्चों को SC का रिजर्वेशन,क्या है अनुच्छेद 142, जिसके तहत दिया ये फैसला
SC status given to non-Dalit children

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को विशेषाधिकार देता है कि वह न्याय के हित में ऐसे फैसले ले सके, जो किसी अन्य कानून द्वारा निर्धारित न हों, लेकिन संविधान का उल्लंघन भी न करें। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस अनुच्छेद का उपयोग करते हुए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें एक गैर-दलित महिला और दलित व्यक्ति के तलाक, उनके बच्चों की जाति और भरण-पोषण से संबंधित प्रावधान तय किए गए।

क्या है अनुच्छेद 142?

अनुच्छेद 142 भारतीय न्याय व्यवस्था में एक असाधारण प्रावधान है। यह सुप्रीम कोर्ट को ऐसे अधिकार देता है जिससे वह किसी भी मामले में पूर्ण न्याय सुनिश्चित कर सके। इसका मुख्य उद्देश्य है न्यायपालिका को ऐसे मामलों में निर्णय लेने का लचीलापन देना, जहां कानून स्पष्ट नहीं है। इस अनुच्छेद का उपयोग सामाजिक सुधार और न्याय के मूल सिद्धांतों को संरक्षित करने के लिए भी किया जाता रहा है।

क्यों महत्वपूर्ण है अनुच्छेद 142?

अनुच्छेद 142 का महत्व इस बात में है कि यह न्यायालय को उन परिस्थितियों में हस्तक्षेप का अधिकार देता है, जहां पारंपरिक कानून अपर्याप्त या अस्पष्ट हो सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार इस अनुच्छेद का उपयोग करके ऐतिहासिक फैसले दिए हैं, जो सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देते हैं। इस अनुच्छेद ने न केवल समाज में बदलाव लाने में मदद की है, बल्कि न्यायिक लचीलेपन की मिसाल भी पेश की है।

मामला: तलाक, बच्चों की जाति और भरण-पोषण

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने जूही पोरिया और प्रदीप पोरिया के तलाक के मामले में अनुच्छेद 142 का उपयोग किया। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और उज्जल भुइयां की पीठ ने स्पष्ट किया कि गैर-दलित महिला अनुसूचित जाति के व्यक्ति से शादी करने के बावजूद अनुसूचित जाति का हिस्सा नहीं बन सकती। हालांकि, उनके बच्चों को अनुसूचित जाति के प्रमाण पत्र का हकदार माना गया, ताकि वे सरकारी शिक्षा और रोजगार में आरक्षण का लाभ ले सकें।

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कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने पति को आदेश दिया कि वह छह महीने के भीतर अपने बच्चों के लिए अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र बनवाए। साथ ही, बच्चों की शिक्षा का पूरा खर्च—including ट्यूशन, बोर्डिंग और लॉजिंग—पति द्वारा उठाने का निर्देश दिया।

इसके अतिरिक्त, पति ने महिला को 42 लाख रुपये का एकमुश्त समझौता राशि दी, रायपुर में ज़मीन का एक प्लॉट दिया और एक दोपहिया वाहन खरीदने का वचन दिया। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित किया कि बच्चे समय-समय पर अपने पिता से मिल सकें और दोनों के बीच संबंध सौहार्दपूर्ण बने रहें।

सामाजिक प्रभाव

यह निर्णय एक महत्वपूर्ण सामाजिक संदेश देता है कि जाति का निर्धारण जन्म से होता है और यह विवाह के जरिए नहीं बदला जा सकता। साथ ही, यह निर्णय इस बात पर भी जोर देता है कि बच्चों के भविष्य और अधिकारों की रक्षा कैसे की जा सकती है, भले ही माता-पिता अलग हो जाएं।

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