
हाल ही में सरकार की तरफ से सस्ते राशन पर एक बड़ा फैसला सामने आया है, जिससे APL (Above Poverty Line) परिवारों को झटका लग सकता है। अब इन परिवारों को चावल और गेहूं की आपूर्ति में कटौती की गई है। पहले जहां इन परिवारों को स्थानीय स्तर पर पर्याप्त राशन दिया जाता था, अब सरकार ने एक तय सीमा निर्धारित कर दी है। नई व्यवस्था के तहत प्रति परिवार को केवल 15 किलो गेहूं और 20 किलो चावल ही मिलेगा। यह राशन ₹2 प्रति किलो गेहूं और ₹3 प्रति किलो चावल की दर से दिया जाएगा।
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केंद्र सरकार की सीमा
यह बदलाव राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के तहत नहीं आता, क्योंकि NFSA के अंतर्गत सिर्फ AAY (Antyodaya Anna Yojana) और PHH (Priority Households) कार्डधारकों को ही सब्सिडी वाला राशन मिलता है। वहीं APL परिवार NFSA की परिधि में नहीं आते, इसलिए उन्हें मिलने वाला राशन राज्य सरकार की जिम्मेदारी होती है। ऐसे में राज्य सरकारों को खुद की राज्य-स्तरीय योजनाएं चलानी पड़ती हैं, जिनके तहत सीमित मात्रा में राशन वितरित किया जाता है।
राज्यों पर बढ़ रहा बोझ
इस नई व्यवस्था से राज्यों की वित्तीय जिम्मेदारी भी बढ़ रही है। उदाहरण के तौर पर, तेलंगाना सरकार ने हाल ही में अपने 17 लाख नए सदस्यों को राशन कार्ड में शामिल किया है। इससे राज्य पर हर महीने करीब 6,952 टन अतिरिक्त चावल का बोझ आ गया है। यह राशन केंद्र सरकार द्वारा नहीं बल्कि राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाता है, क्योंकि ये सदस्य NFSA के अंतर्गत नहीं आते। इस निर्णय से यह साफ है कि APL परिवारों को राशन देने की जिम्मेदारी पूरी तरह राज्य सरकारों पर आ गई है।
APL परिवारों को अब कैसे मिलेगा राशन
अब सवाल यह है कि APL कार्डधारकों को राशन कैसे और कितना मिलेगा। इसके लिए राज्य सरकारें खुद से निर्देश जारी करेंगी, और हर राज्य की नीति अलग हो सकती है। कुछ राज्यों ने राशन की मात्रा घटा दी है, तो कुछ ने केवल NFSA कार्डधारकों को ही प्राथमिकता देने का फैसला किया है। ऐसे में APL परिवारों को अपने स्थानीय राशन डीलर या जिला खाद्य आपूर्ति अधिकारी से संपर्क करके नवीनतम जानकारी लेनी चाहिए।
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राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव
यह फैसला सिर्फ आर्थिक नहीं बल्कि राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से भी अहम माना जा रहा है। APL कार्डधारकों की संख्या अधिक होने के कारण, इन पर किसी भी तरह की कटौती का सीधा असर आम जनता के मूड पर पड़ता है। गरीब और निम्न-मध्यम वर्ग के वे लोग जो BPL सूची से थोड़े ऊपर हैं, उन्हें अब मूल्यवृद्धि का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में सरकार पर एक और दबाव बनेगा कि वह इन परिवारों को राहत देने के लिए कोई वैकल्पिक योजना लेकर आए।
केंद्र और राज्यों के बीच तालमेल की ज़रूरत
इस पूरे मुद्दे से यह बात सामने आती है कि केंद्र और राज्यों के बीच स्पष्ट तालमेल की जरूरत है। जब NFSA के तहत लाभ सीमित हो और APL परिवारों की जिम्मेदारी राज्यों पर हो, तो राज्य सरकारों को न सिर्फ खाद्यान्न खरीदना होगा बल्कि लॉजिस्टिक्स, वितरण और सब्सिडी का पूरा खर्च खुद उठाना होगा। इस खर्च की भरपाई करने के लिए कई राज्यों को अपने बजट में भारी फेरबदल करना पड़ता है, जिससे अन्य योजनाओं पर भी असर पड़ सकता है।
एपीएल परिवारों पर क्या होगा असर
APL (Above Poverty Line) परिवारों पर राशन में की गई इस कटौती का सीधा असर उनकी दैनिक जीवनशैली और घरेलू बजट पर पड़ेगा। ये वो वर्ग है जो गरीबी रेखा के नीचे नहीं आता, लेकिन उनकी आमदनी इतनी अधिक भी नहीं होती कि हर महीने का खर्च आराम से उठा सकें। सरकार द्वारा सस्ते राशन की सुविधा उन्हें कुछ राहत देती थी, जिससे वे बाजार की महंगाई से थोड़ी दूरी बनाए रखते थे।
अब जब सरकार ने बिना किसी पूर्व सूचना के राशन की मात्रा में कटौती की है, तो इसका सबसे पहला असर इन परिवारों की रसोई पर पड़ेगा। हर महीने मिलने वाले चावल और आटे की मात्रा कम होने से उन्हें अब यह जरूरतें खुले बाजार से पूरी करनी होंगी, जहां कीमतें कहीं अधिक हैं। इससे महीने का खाद्यान्न बजट सीधे तौर पर बढ़ जाएगा, जो कम आमदनी वालों के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है।
इसका दूसरा बड़ा असर सामाजिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी पड़ता है। APL कार्डधारकों को पहले से ही बहुत सी सरकारी योजनाओं से बाहर रखा जाता है। अब जब राशन भी कम कर दिया गया है, तो ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार उन्हें ‘सहायता के अयोग्य’ मान रही है। इससे मिडिल क्लास वर्ग में असंतोष और उपेक्षा की भावना जन्म ले सकती है।
क्या भविष्य में मिलेगा समाधान?
इस वक्त इस सवाल का जवाब राज्य सरकारों की मंशा और वित्तीय स्थिति पर निर्भर करता है। यदि राज्यों को केंद्र से कोई अतिरिक्त सहयोग मिलता है, तो वे APL परिवारों को राहत दे सकती हैं। वहीं कुछ राज्य अपनी योजनाओं के तहत सस्ता राशन देने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उसमें भी प्रशासनिक अड़चनें बनी हुई हैं। इसके अलावा, केंद्र सरकार द्वारा एक समावेशी नीति बनाना समय की मांग है, जिससे कि APL, BPL और AAY सभी वर्गों को न्यूनतम खाद्य सुरक्षा मिल सके।
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