
होम लोन लेकर अपना खुद का घर खरीदना केवल एक भावनात्मक निर्णय नहीं बल्कि आर्थिक रूप से भी समझदारी का संकेत हो सकता है। यह न केवल आपको संपत्ति का मालिक बनाता है बल्कि समय के साथ उसकी कीमत में वृद्धि की संभावना भी रहती है। जैसे-जैसे आप लोन चुकाते हैं, वैसे-वैसे घर पर आपका स्वामित्व भी बढ़ता है। साथ ही, आयकर अधिनियम की धारा 80C और 24(b) के तहत टैक्स छूट मिलना भी एक बड़ा फायदा है।
किराए पर रहना
अगर आपकी नौकरी की प्रकृति में बार-बार स्थानांतरण होता है, या आप किसी विशेष शहर में स्थायी रूप से बसने को लेकर निश्चित नहीं हैं, तो किराए पर रहना आपके लिए अधिक व्यवहारिक विकल्प हो सकता है। इससे आपको डाउन पेमेंट, स्टाम्प ड्यूटी और अन्य रजिस्ट्रेशन शुल्क जैसी बड़ी लागतों से राहत मिलती है। साथ ही, घर के रखरखाव की जिम्मेदारी भी मकान मालिक की होती है।
होम लोन और किराए के बीच आर्थिक तुलना
होम लोन लेने का मतलब होता है दीर्घकालिक वित्तीय प्रतिबद्धता। आपकी मासिक आय का बड़ा हिस्सा ईएमआई में चला जाता है, जो आपकी अन्य बचत या निवेश योजनाओं को प्रभावित कर सकता है। वहीं किराए पर रहने से आपकी मासिक बचत अपेक्षाकृत अधिक हो सकती है, जिसे आप SIP, शेयर बाजार या रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy जैसे क्षेत्रों में निवेश कर सकते हैं।
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ब्याज दरें और रियल एस्टेट का भविष्य
होम लोन पर मिलने वाली ब्याज दरें भी निर्णय को प्रभावित करती हैं। अगर ब्याज दरें ज्यादा हैं, तो आप मूलधन की तुलना में दोगुनी राशि चुका सकते हैं। लेकिन यदि रियल एस्टेट बाजार में तेज़ी है और आपके शहर में संपत्ति के दाम बढ़ने की उम्मीद है, तो घर खरीदना दीर्घकालिक निवेश के रूप में फायदेमंद हो सकता है।
एक्सपर्ट्स की राय
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि आप कम से कम 7-10 वर्षों तक एक ही शहर में रहने की योजना बना रहे हैं, आपकी आय स्थिर है, और आपके पास पर्याप्त बचत है तो होम लोन लेकर घर खरीदना समझदारी हो सकती है। इसके विपरीत, यदि आप वर्तमान में लचीलापन चाहते हैं, जल्दी नौकरी बदलने की संभावना है या डाउन पेमेंट नहीं जुटा सकते, तो किराए पर रहना बेहतर विकल्प होगा।
लाइफस्टाइल और प्राथमिकताओं पर आधारित निर्णय
हर व्यक्ति की ज़िंदगी और प्राथमिकताएं अलग होती हैं। कुछ लोग अपने घर की स्थिरता को प्राथमिकता देते हैं जबकि कुछ लोग गतिशील जीवनशैली को। ऐसे में कोई एक विकल्प सभी के लिए सही नहीं हो सकता। सबसे अहम बात यह है कि आप अपनी ज़रूरत, आर्थिक स्थिति और भविष्य की योजनाओं को ध्यान में रखते हुए निर्णय लें।
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