भारत में ज़मीन और मकान खरीदना सिर्फ एक निवेश नहीं बल्कि जीवन भर की पूंजी का प्रतीक होता है। लोग अपने सपनों का घर या खेत खरीदने के लिए वर्षों की बचत लगा देते हैं। लेकिन जब उसी प्रॉपर्टी पर कोई अवैध कब्जा (Illegal Occupation of Property) कर ले, तो हालात बेहद निराशाजनक हो जाते हैं। प्रॉपर्टी विवाद (Property Disputes) न केवल आर्थिक संकट लाते हैं, बल्कि मानसिक तनाव का भी कारण बनते हैं। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाल ही में एक ऐसे ही मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जो ऐसे पीड़ितों के लिए आशा की किरण बन सकता है।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला: बिना कोर्ट जाए हटाया जा सकता है कब्जा
पूना राम बनाम मोती राम (Poona Ram vs Moti Ram) केस में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि किसी व्यक्ति के पास संपत्ति का वैध टाइटल (Property Title) है, तो वह अवैध कब्जाधारी को बिना अदालत का सहारा लिए अपनी संपत्ति से हटा सकता है। अदालत ने यह भी कहा कि इसके लिए व्यक्ति शासकीय सहयोग (Administrative Assistance) प्राप्त कर सकता है।
इस फैसले में न्यायालय ने यह दोहराया कि कोई भी व्यक्ति किसी अन्य की जमीन पर गैरकानूनी रूप से कब्जा नहीं कर सकता, चाहे वह कब्जा कितने भी वर्षों से क्यों न हो। अगर कब्जाधारी के पास संपत्ति से संबंधित कोई वैध दस्तावेज नहीं है, तो उसका कब्जा अवैध माना जाएगा।
12 साल बाद भी वापस ली जा सकती है अपनी जमीन
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर जमीन का वैध मालिक मौजूद है और टाइटल उसके नाम पर है, तो वह 12 साल बाद भी अपनी जमीन का कब्जा वापस ले सकता है, बशर्ते वह जमीन बेदखल नहीं हुई हो और उस पर उसका अधिकार सिद्ध हो। इस फैसले ने यह मिथक तोड़ दिया है कि 12 साल से अधिक पुराने कब्जे वैध हो जाते हैं।
स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट की धारा 5 का क्या है महत्व?
Specific Relief Act 1963 की धारा 5 स्पष्ट रूप से कहती है कि जिस व्यक्ति के पास वैध मालिकाना हक है, वह सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के तहत अदालत में जाकर अवैध कब्जे को हटवाने के लिए मुकदमा दायर कर सकता है। लेकिन अगर प्रशासनिक सहयोग से कब्जा हटाना संभव हो तो अदालत का सहारा लेने की आवश्यकता नहीं है।
मोती राम का तर्क और सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
मोती राम ने यह तर्क दिया था कि वह 12 वर्षों से अधिक समय से जमीन पर कब्जे में है और लिमिटेशन एक्ट 1963 की धारा 64 (Section 64 of Limitation Act) के अनुसार, ऐसे मामलों में कब्जा नहीं हटाया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया। न्यायालय ने कहा कि यह कानून उन संपत्तियों पर लागू होता है जिनके मालिक अनुपस्थित हैं। यदि मालिक मौजूद है और उसके पास वैध दस्तावेज हैं, तो वह अपनी संपत्ति का अधिकार कभी भी प्राप्त कर सकता है।
पीड़ित व्यक्ति क्या कर सकता है?
यदि आप एक वैध संपत्ति धारक हैं और आपकी जमीन या मकान पर किसी ने अवैध कब्जा कर लिया है, तो आपको घबराने की आवश्यकता नहीं है। अब आप कानून के सहारे प्रशासन से सहयोग लेकर कब्जा हटा सकते हैं। सबसे पहले अपने भूमि दस्तावेज़ तैयार रखें और स्थानीय प्रशासन या पुलिस से संपर्क करें। यदि वहां से सहयोग नहीं मिलता तो स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट के अंतर्गत अदालत में केस दायर करना अंतिम विकल्प हो सकता है।
सवाल: क्या कोर्ट में जाए बिना अवैध कब्जा हटाया जा सकता है?
हां, यदि आपके पास संपत्ति का वैध टाइटल है तो प्रशासनिक सहयोग से कब्जा हटवाया जा सकता है।
सवाल: अगर कब्जा 12 साल से ज्यादा पुराना हो तो क्या किया जा सकता है?
यदि आप जमीन के वैध मालिक हैं और आपके पास टाइटल है, तो आप कब्जा हटवाने का अधिकार रखते हैं, भले ही कब्जा 12 साल पुराना हो।
सवाल: अगर जमीन का टाइटल नहीं है, तब क्या करें?
ऐसी स्थिति में आपको अदालत का सहारा लेना होगा और स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट के तहत मुकदमा दायर करना पड़ेगा।
सवाल: स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट की धारा 5 क्या कहती है?
धारा 5 कहती है कि संपत्ति का वैध मालिक अदालत में जाकर अवैध कब्जा हटाने के लिए दावा कर सकता है।
सवाल: कब्जा हटवाने से पहले क्या जरूरी है?
पहले यह सुनिश्चित करें कि आपके पास सभी जरूरी दस्तावेज हैं और स्थानीय प्रशासन को सूचना दी गई है। कब्जाधारी पर स्थगन (Stay) लाने का प्रयास भी करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने आम नागरिकों को बड़ी राहत दी है। जमीन या मकान पर जबरन कब्जा करना अब आसान नहीं रह गया है। जिनके पास वैध टाइटल है, वे प्रशासनिक सहयोग से कब्जा हटवा सकते हैं और अपने हक की रक्षा कर सकते हैं। इससे न केवल अदालतों पर बोझ कम होगा बल्कि नागरिकों का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।