भारत में “One Nation One Election” या “एक राष्ट्र एक चुनाव” का मतलब है कि देशभर में लोकसभा (संसद) और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं। अभी, दोनों के चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, जिससे चुनावी प्रक्रिया लगातार चलती रहती है। इस विचार को लागू करने के कई फायदे और नुकसान हैं, और कई राजनीतिक दल इसके समर्थन में हैं तो कई विरोध में। आइए, इस बारे में विस्तार से जानें।
One Nation One Election के फायदे
- पैसे और संसाधनों की बचत: बार-बार चुनाव कराने पर सरकार को भारी खर्च उठाना पड़ता है। एक साथ चुनाव होने से प्रशासन, सुरक्षा और चुनाव से जुड़ी अन्य व्यवस्थाओं पर खर्च कम होगा।
- लगातार विकास कार्य: चुनावी माहौल में सरकारें कई बार फैसले नहीं ले पातीं, क्योंकि चुनाव आचार संहिता लागू हो जाती है। अगर एक साथ चुनाव होंगे तो सरकारें पांच साल बिना रुकावट के काम कर सकेंगी।
- चुनावी थकान से मुक्ति: बार-बार चुनाव से जनता और राजनीतिक दलों पर मानसिक और शारीरिक थकान होती है। एक बार में चुनाव होने से यह थकान कम होगी।
- जनता को चुनाव में अधिक ध्यान देने का मौका: अगर सभी चुनाव एक साथ होते हैं, तो मतदाता ज्यादा सोच-समझकर अपना वोट डाल सकेंगे क्योंकि उन्हें बार-बार वोट डालने की जरूरत नहीं होगी।
One Nation One Election के नुकसान
- प्रशासनिक और तकनीकी चुनौतियाँ: देश में इतने बड़े पैमाने पर चुनाव कराना एक बहुत बड़ा प्रशासनिक काम है। हर राज्य में अलग-अलग मुद्दे और समस्याएं होती हैं, जो एक साथ चुनाव में सही ढंग से संबोधित नहीं हो पातीं।
- राज्य और केंद्र के मुद्दे एक साथ मिल सकते हैं: राज्यों और केंद्र सरकार के मुद्दे अलग-अलग होते हैं। एक साथ चुनाव होने से राज्यों के मुद्दे दब सकते हैं और राष्ट्रीय मुद्दों का अधिक जोर हो सकता है।
- लोकतंत्र की विविधता पर असर: बार-बार चुनाव होने से सरकारें और राजनीतिक दल जनता के करीब रहते हैं और जनता के प्रति जवाबदेह रहते हैं। अगर चुनाव पांच साल बाद ही होंगे, तो जनता की समस्याओं पर तुरंत ध्यान देना कठिन हो सकता है।
- क्षेत्रीय पार्टियों की ताकत कम हो सकती है: एक साथ चुनाव होने से राष्ट्रीय पार्टियों को ज्यादा लाभ मिल सकता है और क्षेत्रीय पार्टियों की आवाज कमजोर हो सकती है।
कौन सी पार्टियां हैं इसके विरोध में?
One Nation One Election के समर्थन और विरोध में राजनीतिक दल बंटे हुए हैं।
- समर्थन: भारतीय जनता पार्टी (BJP) इस विचार का समर्थन करती है। उनका मानना है कि इससे चुनावी खर्च कम होगा और विकास कार्यों पर अधिक ध्यान दिया जा सकेगा।
- विरोध: कई विपक्षी दल जैसे कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस (TMC), समाजवादी पार्टी (SP), और कुछ क्षेत्रीय पार्टियाँ इसका विरोध करती हैं। उनका कहना है कि इससे राज्यों के मुद्दे अनदेखे रह जाएंगे और लोकतंत्र को नुकसान हो सकता है। वे यह भी तर्क देते हैं कि यह विचार व्यावहारिक नहीं है, क्योंकि हर राज्य की चुनावी अवधि अलग होती है और किसी सरकार के बीच में गिरने की स्थिति में क्या होगा, इसका समाधान स्पष्ट नहीं है।