संपत्ति का बंटवारा (Property Dispute) परिवार में एक ऐसा मुद्दा है जो अक्सर विवाद का कारण बनता है। किसी भी परिवार में एक समय ऐसा आता है जब संपत्ति को विभाजित करने की आवश्यकता होती है। इस प्रक्रिया में पारिवारिक संबंधों पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। भारत में संपत्ति विवाद (Property Dispute Cases) के मामले आम हैं और इनमें भाई-भाई, भाई-बहन, यहां तक कि जीजा तक की भूमिका देखी जाती है।
माता-पिता की संपत्ति पर बेटा-बेटी का समान अधिकार
कानून के अनुसार, माता-पिता की संपत्ति पर बेटा और बेटी दोनों का समान अधिकार (Property Rights) होता है। विवाह के बाद भी बेटी का संपत्ति पर हक बना रहता है। हालांकि, पारंपरिक रूप से देखा गया है कि बेटियां अपनी संपत्ति का हिस्सा भाइयों के नाम कर देती हैं, लेकिन यह पूरी तरह से उनकी मर्जी पर निर्भर करता है।
संपत्ति बंटवारे की प्रक्रिया
जब परिवार के सदस्य अलग-अलग रहना चाहते हैं तो संपत्ति का बंटवारा जरूरी हो जाता है। इस प्रक्रिया में सभी हिस्सेदारों की सहमति अनिवार्य होती है। यदि कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो मामला एसडीएम कोर्ट में पहुंच सकता है। यहां सरकारी दस्तावेज़ों के आधार पर फैसला होता है।
बंटवारे में जीजा की भूमिका
विवाहिता बहनों के मामले में उनके पति यानी जीजा का सीधा हस्तक्षेप संपत्ति में नहीं होता है। लेकिन जीजा बहन पर दबाव डालकर अप्रत्यक्ष रूप से संपत्ति विवाद को प्रभावित कर सकते हैं। इसीलिए बंटवारे की प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखना जरूरी है।
बिना वसीयत के संपत्ति का वितरण
अगर माता-पिता ने संपत्ति का बंटवारा किए बिना अपनी वसीयत नहीं छोड़ी है तो संपत्ति सभी संतानों में समान रूप से बंटती है। इसमें बेटा और बेटी दोनों बराबर के हिस्सेदार होते हैं। हालांकि, अगर संपत्ति किसी एक व्यक्ति के नाम कर दी गई हो तो यह नियम लागू नहीं होता है।
बहन का अधिकार छोड़ने का निर्णय
कानून यह स्पष्ट करता है कि बेटी अपनी मर्जी से संपत्ति के अधिकार को छोड़ सकती है। यह उसकी इच्छा पर निर्भर करता है और इसमें किसी भी तरह का दबाव डाला नहीं जा सकता। यह आम तौर पर पारिवारिक रिश्तों को बनाए रखने के लिए किया जाता है।
विवाद से बचने के कानूनी उपाय
संपत्ति विवाद (Property Laws) से बचने के लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि सभी हिस्सेदारों की सहमति हो। किसी भी बंटवारे से पहले सरकारी दस्तावेज़ और कानूनी नियमों का पालन करना चाहिए।