सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक निर्णय में कहा है कि संपत्ति का अधिकार संविधान के अनुच्छेद-300-ए के तहत एक संवैधानिक अधिकार है। इसके तहत किसी भी व्यक्ति को कानून के अनुसार उचित मुआवजा दिए बिना उसकी संपत्ति से बेदखल नहीं किया जा सकता। कोर्ट का यह निर्णय कर्नाटक के बेंगलुरु-मैसुरु इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर प्रोजेक्ट से जुड़े एक मामले पर आया है, जिसमें भू-स्वामियों को बिना मुआवजा दिए उनकी जमीन से बेदखल कर दिया गया था।
कानूनी अधिकार के बिना बेदखली असंवैधानिक
संविधान के अनुच्छेद-300-ए में यह स्पष्ट किया गया है कि किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से बेदखल करने के लिए कानूनी आधार आवश्यक है। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि संपत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकार नहीं है, लेकिन यह एक संवैधानिक और मानवाधिकार है।
इस प्रकरण में, कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड (केआइएडीबी) ने 2003 में एक प्रारंभिक अधिसूचना जारी की और 2005 में जमीन पर कब्जा कर लिया। हालांकि, भू-स्वामियों को वर्षों तक मुआवजा नहीं दिया गया, जिससे उन्हें अदालतों के चक्कर लगाने पड़े।
बिना मुआवजे की बेदखली
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि 2003 के बाजार मूल्य पर मुआवजा देना न्याय का मजाक होगा। कोर्ट ने 2019 के बाजार मूल्य के आधार पर मुआवजे का निर्धारण करने का आदेश दिया। इस निर्णय ने यह सुनिश्चित किया कि भू-स्वामियों को उनके अधिकारों का संरक्षण मिले और उन्हें न्याय प्रदान किया जाए।
मुआवजे में देरी के लिए राज्य सरकार जिम्मेदार
कोर्ट ने इस मामले में स्पष्ट किया कि मुआवजा पाने में देरी भू-स्वामियों की ओर से नहीं, बल्कि राज्य सरकार और केआइएडीबी के सुस्त रवैये के कारण हुई। 22 अप्रैल, 2019 को विशेष भू-अधिग्रहण अधिकारी (एसएलएओ) ने मुआवजे का निर्धारण किया, लेकिन यह प्रक्रिया वर्षों तक लंबित रही। सुप्रीम कोर्ट ने इसे गंभीरता से लेते हुए आदेश दिया कि मुआवजे की घोषणा दो महीने के भीतर की जाए।
सुप्रीम कोर्ट का अनुच्छेद-142 का उपयोग
कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग करते हुए यह सुनिश्चित किया कि पीड़ितों को उचित मुआवजा मिले। यह निर्णय कल्याणकारी राज्य के सिद्धांत को भी मजबूती प्रदान करता है, जिसमें प्रत्येक नागरिक के अधिकारों की रक्षा करना प्राथमिक दायित्व है।