“गोरखा मतलब वह सैनिक जिसे मौत से डर नहीं लगता।” फील्ड मार्शल जनरल मानिक शॉ के ये शब्द आज भी गोरखा सैनिकों की बहादुरी को परिभाषित करते हैं। लेकिन भारतीय सेना में गोरखा सैनिकों की मौजूदगी को लेकर पिछले कुछ सालों से विवाद बना हुआ है। 2019 के बाद से नेपाली गोरखा सैनिकों की भर्ती भारतीय सेना में बंद है।
अग्निपथ योजना और कोरोना महामारी के कारण नेपाल सरकार ने भारतीय सेना में गोरखा सैनिकों को भेजने पर रोक लगा दी। लेकिन हाल ही में भारतीय और नेपाली सेना प्रमुखों की बैठकों से उम्मीद जगी है कि यह विवाद जल्द खत्म हो सकता है।
गोरखा रेजीमेंट: एक गौरवशाली इतिहास
गोरखा रेजीमेंट का इतिहास 200 साल पुराना है। यह दुनिया की इकलौती ऐसी रेजीमेंट है जो तीन देशों—भारत, नेपाल और ब्रिटेन—की सेनाओं में अपनी बहादुरी के झंडे गाड़ रही है।
भारतीय गोरखा रेजीमेंट में आज भी नेपाली गोरखा मौजूद हैं, लेकिन पिछले 4 सालों से नई भर्ती न होने की वजह से हर साल सैनिकों की संख्या घट रही है।
अग्निपथ योजना से विवाद
2019 के बाद अग्निपथ योजना लागू होने से नेपाल सरकार ने भारतीय सेना में गोरखा सैनिकों की भर्ती पर आपत्ति जताई। इस योजना के तहत सेना में शॉर्ट-टर्म भर्ती होती है, जिसे नेपाल ने अपनी परंपराओं और नीतियों के खिलाफ बताया।
अगर यह स्थिति बनी रही, तो अगले 10-12 सालों में भारतीय सेना में एक भी नेपाली गोरखा सैनिक नहीं बचेगा।
सेना प्रमुखों के दौरे से विवाद सुलझने की उम्मीद
- भारतीय सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी के नेपाल दौरे के बाद अब नेपाली सेना प्रमुख जनरल अशोक राज सिग्देल भारत दौरे पर आ रहे हैं।
- इस दौरे के दौरान अग्निपथ योजना के तहत नेपाली गोरखा सैनिकों की भर्ती पर बातचीत होगी।
नेपाल आर्मी चीफ भारत में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से भी मुलाकात करेंगे। इन बैठकों से यह उम्मीद की जा रही है कि गोरखा सैनिकों की भर्ती को लेकर विवाद सुलझाया जा सकेगा।
गोरखा रेजीमेंट की अहमियत
- गोरखा सैनिकों की वीरता को दुनिया मानती है।
- भारतीय सेना में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है, खासकर पहाड़ी इलाकों और रणनीतिक क्षेत्रों में।
- चीन और पाकिस्तान जैसे देश भी गोरखा सैनिकों को अपनी सेना में शामिल करना चाहते हैं, जो उनकी बहादुरी और युद्ध कौशल को साबित करता है।
क्या होगा आगे?
नेपाली सेना प्रमुख के इस दौरे से दोनों देशों के बीच भरोसा बढ़ने और विवाद सुलझने की संभावना है। यह भारत-नेपाल के ऐतिहासिक सैन्य संबंधों को बनाए रखने में मदद करेगा और गोरखा सैनिकों की परंपरा को फिर से मजबूत करेगा।
क्या गोरखा रेजीमेंट में फिर से नेपाली गोरखा भर्ती होंगे? यह बातचीत का नतीजा तय करेगा। देश और दुनिया से जुड़ी ऐसी खबरों के लिए हमारे साथ बने रहें।